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प्रभुत्व शकित
हवे प्रभुत्वशक्ति कहीए छीएः –
अखंड प्रताप स्वतंत्र शोभित प्रभुत्वशक्ति [ – जेनो प्रताप
अखंडित छे एवा स्वातंत्र्यथी ( – स्वाधीनताथी) शोभायमानपणुं जेनुं
लक्षण छे एवी प्रभुत्वशक्ति.१] सामान्यपणाथी तो एकरूप वस्तुनुं
प्रभुत्व बिराजी रह्युं छे, अने विशेषपणे द्रव्यनुं प्रभुत्व जुदुं छे, गुणनुं
प्रभुत्व जुदुं छे अने पर्यायनुं प्रभुत्व जुदुं छे. द्रव्यना प्रभुत्वथी गुण-
पर्यायनुं प्रभुत्व छे अने गुण-पर्यायना प्रभुत्वथी द्रव्यनुं प्रभुत्व छे;
केमके द्रव्य वडे गुण-पर्याय छे, गुण-पर्याय वडे – द्रव्य छे. द्रव्य गुणी छे,
गुण (ते) गुण छे. गुणीद्वारा गुणनी सिद्धि छे, गुण द्वारा गुणीनी सिद्धि
छे, (हवे) विशेष प्रभुत्व कहीए छीए.
द्रव्यनुं प्रभुत्व
द्रव्यमां जे प्रभुत्व छे ते गुण-पर्यायना अनंत प्रभुत्व सहित छे,
तथा अखंडितप्रताप सहित छे; (ते) गुण-पर्यायने द्रवे छे तेथी गुण-
पर्यायना स्वभावने धारण करीने द्रव्यना अनंत महिमारूप प्रभुत्वने
द्रव्यमां प्रकट करे छे. ते एक अचल द्रव्यनुं प्रभुत्व अनेक स्वभाव –
प्रभुत्वनुं कर्ता प्रवर्ते छे एटले सर्व प्रभुत्वनो पुंज द्रव्यप्रभुत्व छे. हवे
गुणनुं प्रभुत्व कहीए छीए.
गुणनुं प्रभुत्व
प्रथम सत्तागुणनुं प्रभुत्व कहीए छीए. द्रव्यनुं सत्ता लक्षण छे;
ते सत्तालक्षण अखंडित प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभित छे. ते सामान्य-
विशेष प्रभुत्व सहित छे ते सत्तानुं सामान्य प्रभुत्व कहीए छीए – सत्ता
१. समयसार गुज० पृ. ५०३-४