वीर्यशकित[ ६१
(१) आ द्रव्यवीर्य भेद छे के अभेद?
(२) अस्ति छे के नास्ति छे?
(३) नित्य छे के अनित्य छे?
(४) एक छे के अनेक छे?
(५) कारण छे के कार्य छे?
(६) सामान्य छे के विशेष छे?
तेनुं समाधान करीए छीएः
—
(१) सामान्यपणे कहीए त्यारे तो द्रव्यवीर्य अभेद छे अने
गुणोना समुदायनी विवक्षाथी कहीए त्यारे भेद छे; गुणोना भेद जुदा
छे तेथी आ विवक्षामां भेद आव्यो, परंतु अभेदने साधवानुं निमित्त
आ भेद छे. भेद विना अभेद होय नहि; तेथी (द्रव्यवीर्यने) भेद-
अभेद कहीए.
(२) (द्रव्यवीर्य) पोताना चतुष्टयथी अस्ति छे (अने)
परचतुष्टयथी नास्ति छे.
(३) द्रव्यवीर्य नित्य छे, (अने) आ द्रव्यवीर्यमां पर्यायवीर्य
पण आवे छे ते (पर्यायवीर्य)वडे अनित्य छे. परंतु द्रव्यवीर्य नित्य
छे तेने पर्यायवीर्य साधे छे, तेथी अनित्य ते नित्यनुं साधन छे. ते
(द्रव्यवीर्य)नो नित्यानित्यात्मक स्वभाव छे. (ए रीते ते) अनेक
धर्मात्मक छे. नयचक्र ग्रंथमां कह्युं छे के – ‘नानास्वभावसंयुक्तं द्रव्यं
ज्ञात्वा प्रमाणतः १(‘अर्थात् अनेक स्वभाव संयुक्त द्रव्यने प्रमाणवडे
जाणीने – ’) ए वचनथी पर्याय स्वभावथी अनित्य छे.
(अहीं ) कोई प्रश्न करे छे के – पर्यायने अनित्य कहो, पण
द्रव्यने अनित्य न कहो.
१. जुओ, नयचक्र गा. १७३.