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चिद्दविलास
तेनुं समाधाान – उपचारथी द्रव्यने (अनित्य) कहीए; लक्षणथी
पर्यायने अनित्य कहीए.
(वळी अहीं ) बीजो प्रश्न थाय छे के – उत्पाद-व्यय-ध्रुव तो
सत्तानुं लक्षण छे१ अने सत्ता द्रव्यनुं लक्षण छे,२ (माटे तेने) पर्यायनुं
लक्षण न कहो.
तेनुं समाधान करीए छीएः – उत्पाद-व्यय पण पर्यायसत्तानुं
ज लक्षण (छे), उपचारथी (तेने) द्रव्यमां कहीए. नयचक्रमां कह्युं छे
के ‘द्रव्ये पर्यायोपचारः पर्याये द्रव्योपचारः३ (अर्थात् द्रव्यमां पर्यायनो
उपचार थाय छे अने पर्यायमां द्रव्यनो उपचार थाय छे)’ माटे
(अनित्य पर्यायनो) उपचार करीने (द्रव्यने अनित्य) कहीए छीए.
अनित्य द्रव्य मूळभूत वस्तु नथी – एम जाणवुं.
(४) (द्रव्यवीर्य) द्रव्यथी एक छे अने गुण-पर्यायना स्वभावथी
अनेक छे; अनेक स्वभाववडे एक छे, माटे अनेक उपचारथी कहीए.
एक स्वभाव साधवानुं निमित्त अनेकपणुं एम उपचारथी साध्युं छे.
(५) पूर्व परिणामथी युक्त (ते) कारणरूप द्रव्य छे (अने)
उत्तर परिणामथी युक्त (ते) कार्यरूप द्रव्य छे,४ – कारण कार्य-स्वभाव
द्रव्यमां ज छे; तेथी नयविवक्षावडे द्रव्यमां कारण-कार्य साधवामां कोई
दोष नथी. पूर्व परिणाम ग्राहकनय (अने) उत्तर परिणाम ग्राहकनय
वडे (कारण – कार्य) साधवुं.
(६) द्रव्यवीर्य सामान्य छे, तेने गुण-पर्यायवीर्यथी विशेष
कहीए; तेथी सामान्यविशेषरूप तेनुं ज छे.
द्रव्यवीर्यना आ बधां विशेषणो नयथी कहीए.
१. तत्त्वार्थ सूत्र ५ – ३०;
२. तत्त्वार्थ सूत्र ५ – २९;
३. जुओ नयचक्र गा. ५१.
४. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा. गा. २२२, २३०.