वीर्यशकित[ ६३
गुणवीर्य
गुणवीर्यनुं विशेष कहीए छीएः —
गुणने (टकावी) राखवानुं जे सामर्थ्य तेने गुणवीर्य कहीए.
सामान्य-विशेष गुणवीर्य कहीए छीए. ज्ञानगुणमां ज्ञायकपणाने
(टकावी) राखवानुं जे सामर्थ्य छे ते ज्ञानगुणवीर्य छे; दर्शनमां
देखवानी शक्ति छे तेने (टकावी) राखवानुं जे सामर्थ्य छे ते दर्शन
(गुण) – वीर्य छे. सुखने (टकावी) राखवानुं जे सामर्थ्य छे ते सुख
(गुण) – वीर्य छे. इत्यादि गुणोने (टकावी) राखवानुं सामर्थ्य ते
विशेष – गुणवीर्य छे; एकेक गुणमां वीर्यशक्तिना प्रभावथी आवुं
सामर्थ्य छे ते कहीए छीएः —
एक सत्तागुण वीर्यना प्रभावथी आवा महिमाने धारण करे छे
के द्रव्य – सत्तावीर्यना प्रभावथी द्रव्यना ‘छे’ पणानी सामर्थ्यता आवी,
गुण-सत्तावीर्यना प्रभावथी गुणना ‘छे’ पणानी सामर्थ्यता आवी;
पर्याय – सत्तावीर्यना प्रभावथी पर्यायना ‘छे’पणानी सामर्थ्यता आवी;
एक सूक्ष्मगुण – सत्तावीर्यमां एवी शक्ति छे के (तेने लीधे सर्व गुण)
‘सूक्ष्म छे’ एवी सामर्थ्यता थई. ज्ञानसूक्ष्म छे एवी सामर्थ्यता आवी
इत्यादि सर्वे गुणोमां वीर्यसत्ता ( – सत्तावीर्य)नो प्रभाव फेलाई रह्यो
छे. आ प्रकारे सर्वे गुणोमां पोतपोताना गुणगुणनुं वीर्य, अनंत
प्रभावने धारण करे छे, विस्तार (थई जाय ते) माटे (अहीं) लख्युं
नथी.
ज्ञान असाधारण गुण छे, सत्ता साधारण गुण छे, एमां
सत्तानी मुख्यता लईए त्यारे (एम) कहीए के ज्ञान सत्ताना आधारे
छे तेथी सत्ता प्रधान छे.
सत्ता द्रव्य-गुण-पर्यायना रूपने राखे छे तेमज ज्ञानना रूपने
पण राखे छे, तेथी असाधारण वडे साधारण छे.