(अने) चेतनावडे चेतननी सत्ता छे, माटे चेतन सत्ताने राखवानुं
कारण ज्ञान चेतना छे. ज्ञान वडे सर्वज्ञशक्ति छे, (ते) सर्वेमां प्रधान
छे, पूज्य छे. ते ज्ञान होय तो सर्वे गुणो होय. जेम निगोदियाने
ज्ञान हीन छे, तेथी सर्वे गुणो दबायेला छे, ज्ञान वध्युं त्यारे गुणो
वधता गया. जेम जेम स्वसंवेदन
विना अनंत सुख (एवुं) नाम न पाम्युं, माटे ज्ञानगुण सर्व
चेतनामां प्रधान छे. तेनाथी ज चेतना सत्ता छे. साधारण सत्ता हती
तेने चेतनासत्ता एवुं नाम मळ्युं ते चेतनाने लीधे मळ्युं छे. चेतनामां
ज्ञान प्रधान छे. साधारण सत्ता अप्रधान हती तेने असाधारण
चेतनतारूप ज्ञाननी प्रधानताथी ‘असाधारण चेतनसत्ता’ एवुं प्रधान
नाम मळ्युं. सत्ता ज्ञानमां आवो महिमा सत्ताज्ञानना वीर्यथी छे, तेथी
वीर्यगुण प्रधान छे.
पर्यायवीर्य कहीए. (परिणाम वडे) वस्तुने वेदे, गुणने वेदे त्यारे वस्तु
प्रगटे, वस्तुनुं अने गुणनुं स्वरूप पर्याय द्वारा प्रगट थाय छे.
वस्तुरूप न परिणमे तो अवस्तु थई जाय, गुणरूप न परिणमे तो
गुणनुं स्वरूप न रहे; जो ज्ञानरूप न परिणमे तो ज्ञान न रहे.
तेथी सर्व गुणो न परिणमे. तो सर्व गुणो कई रीते होय? सर्वनुं
मूळ कारण पर्याय छे. पर्याय अनित्य छे, (ते) नित्यनुं कारण छे,
नित्य-अनित्य वस्तु छे. पर्याय(रूपी) चंचळ तरंगो द्रव्य (रूपी) ध्रुव
समुद्रने दर्शावे छे.