वीर्यशकित[ ६५
(अहीं) कोई प्रश्न करे छे के – पर्याय वस्तु छे के अवस्तु छे?
जो ते वस्तु होय तो वस्तुने वस्तुसंज्ञा न कहेवी जोईए? (केम के)
पर्याय ज वस्तु छे, अवस्तु होय तो ते नाशरूप होय (अर्थात् ते
अभावरूप होय) माटे तेनो विरोध आवे छे.
तेनुं समाधाान : – द्रव्य-गुण-पर्यायरूप वस्तु छे. पर्याय,
परिणाम, द्रव्य – वेदना, गुण – उत्पाद आदि पर्याय छे. तेथी पर्यायने
वस्तु संज्ञा आविवक्षाथी कहीए. (द्रव्य-गुण-पर्याय) त्रणेनी परिणाम
सत्ता अभेद छे तेथी वस्तु संज्ञा परिणाम स्वरूपने परिणाम
अपेक्षाए कहीए, द्रव्य अपेक्षाए परिणामने वस्तु न कहीए. जो
आ – अपेक्षाए (परिणाम अपेक्षाए) पण (पर्यायने) वस्तु न कहीए
तो परिणाम कोई वस्तु रहेती नथी – (तेनो) नाश थाय छे. माटे
(पर्यायनुं वस्तुपणुं) विवक्षाथी प्रमाण छे. (ते) द्रव्यरूप नथी (पण)
पर्याय (रूप) वस्तु छे; (ते) अनंत गुणथी ध्रुवरूप वस्तुना कारण
(रूप) वस्तु छे. (पण पोते) ध्रुवरूप कार्य नथी (अर्थात् पर्याय ते
ध्रुव द्रव्यगुणनुं कारण छे पण पोते ज ध्रुव द्रव्यगुणरूप नथी) (अहीं)
आ एक जुदी विवक्षा छे. घणे ठेकाणे तो द्रव्य – गुण ते कारण अने
पर्याय ते कार्य – एम बताववामां आवे छे. परंतु आ ठेकाणे तो
पर्यायने कारण कह्युं छे अने द्रव्य-गुणने तेनुं कार्य कह्युं छे; केमके
अहीं ✽
पर्यायमां पण वस्तुपणुं छे एम सिद्ध करवुं छे; कार्य
परिणाम ज देखाडे छे ए विवक्षा जुदी छे, ए (वात) पहेलां कही
छे. नाना ( – अनेक) भेदथी नानी ( – अनेक) विवक्षाओ छे; नयने
जाणवाथी विवक्षा जणाय छे. तेथी पर्यायरूप वस्तु द्रव्यात्मक नथी ए
कथन सिद्ध थयुं.
पर्यायनां द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भाव केवा? ते कहीए छीएः –
[पर्याय] ऊपजवानुं क्षेत्र तो द्रव्य छे;
✽प्रवचनसार गा. ८७ टीका.