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चिद्दविलास
स्वरूप क्षेत्र – प्रदेशे प्रदेशे परिणामशक्ति छे, ते शक्तिस्थान ज
क्षेत्र छे;
काळ समय – मर्यादा छे, निज – वर्तनानी मर्यादा काळ छे.
भाव – सर्व प्रगट – सर्वस्व परिणमन – सर्वे निजलक्षण (रूप)
अवस्थाथी शोभित छे ते भाव कहीए.
आ प्रमाणे पर्यायना स्वरूपने सदा निश्चल राखे एवी
सामर्थ्यतानुं नाम पर्यायवीर्यशक्ति कहीए.
क्षेत्रवीर्य
हवे क्षेत्रवीर्य कहीए छीए. पोताना प्रदेशने क्षेत्र कहीए; तेने
परिपूर्ण निष्पन्न राखवानी सामर्थ्यता ते क्षेत्रवीर्यशक्ति छे. क्षेत्रवीर्यने
लीधे क्षेत्र छे, क्षेत्रमां अनंतगुणनो निवास छे, एकेक गुणमां अनंत
शक्ति छे, अनंत पर्याय छे. एकेक गुणना रूपमां सर्वे गुणोनुं रूप
सधाय छे. सत्तागुणना रूपमां सर्वे गुणोनुं रूप सधाय छे. सत्ताथी
सर्वे गुणो ‘छे’ लक्षणवाळा छे, सत्ता सर्वेमां व्यापक छे. ज्ञान ‘छे,’
दर्शन ‘छे,’ द्रव्य ‘छे,’ – ए प्रमाणे द्रव्यत्व, अगुरुलघुत्व वगेरे बधा
गुणोमां (सत्तानुं व्यापकपणुं) जाणवुं. क्षेत्रमां गुणनो विलास,
पर्यायनो विलास छे. द्रव्य – मंदिरनी मूळ भूमिका प्रदेशनुं क्षेत्र छे.
क्षेत्र – प्रदेशमां अनंत गुणो छे, क्षेत्र वडे द्रव्यनी मर्यादा जाणवामां
आवे छे. द्रव्य – गुण – पर्यायनो विलास, निवास अथवा प्रकाश क्षेत्रना
आधारे छे. आ क्षेत्र बधानुं अधिकरण छे. जेम, नरकनुं क्षेत्र दुःख
उत्पन्न करवानुं कारण छे, कोई देवादिक नारकीनां दुःखने मटाडी शके
नहि, एवो ते क्षेत्रनो प्रभाव छे. अने स्वर्गभूमिमां सहजपणे
शीतादि वेदना नथी (एवो ते) क्षेत्रनो प्रभाव छे. ते प्रमाणे
आत्मप्रदेशना क्षेत्रनो एवो प्रभाव छे के अनंत चेतना द्रव्य-गुण-
पर्यायना विलासने प्रगट करे छे. (अहीं) एटलुं विशेष छे के