वीर्यशकित[ ६७
नरकादि क्षेत्र तो भिन्न वस्तुनुं कारण छे (अने) आत्मप्रदेश क्षेत्र
गुण पर्यायथी अभिन्न छे. आ प्रदेशक्षेत्रमां उत्पाद-व्यय-ध्रुव पण
सिद्ध थाय छे. (ते आ प्रमाणे – ) ✽
उपचारथी एक प्रदेशने मुख्य
करीए तेनो उत्पाद, बीजा प्रदेशनी गौणता ते व्यय गणवो (अने)
ध्रुव मुख्य गौणपणा रहित अनुस्यूत शक्ति-वस्तुरूप शक्ति छे – ए
प्रकारे धारवुं. ए प्रमाणे प्रदेश क्षेत्रनो अनंत महिमा छे. आ प्रदेश
क्षेत्र, लोकालोकने जाणवा माटे अरीसो छे. जे जीवोए आ प्रदेश –
आ प्रदेशक्षेत्र – मां निवास कर्यो छे तेओ ज अनंत सुखना भोक्ता
थया छे. आवा प्रदेशक्षेत्रने (टकावी) राखवाना सामर्थ्यनुं नाम
क्षेत्रवीर्यशक्ति छे.
काळवीर्य
हवे काळवीर्य (शक्ति) कहीए छीएः —
काळ – पोताना द्रव्य-गुण-पर्यायनी मर्यादा ते काळ छे, तेने
(टकावी) राखवानी सामर्थ्यतानुं नाम काळवीर्य शक्ति छे. द्रव्यनी
वर्तना ते द्रव्य-काळ-क्षण छे. गुणनी वर्तना ते गुणकाळ छे, पर्यायनी
वर्तना ते पर्याय – काळ छे.
अहीं कोई प्रश्न करे के – द्रव्यवर्तना तो गुणपर्यायवर्तनाथी छे,
माटे गुणपर्यायवर्तना पण द्रव्यवर्तना छे. (तथा) द्रव्यवर्तनाथी
गुणपर्यायवर्तना छे, माटे द्रव्यवर्तनामां गुणपर्यायवर्तना कहो (अने)
गुणपर्याय (वर्तना)मां द्रव्यवर्तना कहो?
तेनुं समाधाान – हे भव्य! तें जे प्रश्न कर्यो ते तो साचो छे,
परंतु अहीं जे विवक्षा छे ते कहीए छीए. गुणपर्यायना पुंजनी वर्तना
ते द्रव्यवर्तना छे केम के गुणपर्यायनो पुंज ते द्रव्य छे. द्रव्यनो स्वभाव
गुण-पर्याय छे, ते द्रव्य पोतना स्वभावरूपे वर्ते छे तेथी द्रव्यवर्तनामां
✽जुओ, प्रवचनसार गा. ९९ टीका.