७६ ]
चिद्दविलास
प्रदेशत्वशकित
आत्मा विषे प्रदेशत्वशक्ति छे, तेनुं वर्णन करीए छीए.
संसार अवस्थामां अनादि संसारथी प्रदेश – काया संकोच विस्तार
(पामे छे), मुक्त थतां चरम शरीरथी किंचित् ऊणा आकारने धरे✽ छे.
ते एकेक प्रदेशमां अनंत गुणो छे, एवा लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशो
छे. अभेदविवक्षामां ‘प्रदेशत्व’, भेदविवक्षामां ‘असंख्य’, (तथा)
व्यवहारमां ‘देहप्रमाण’ कहीए. तेमज अवस्थान विवक्षाथी लोकाग्र
अवस्थानरूप थईने निवास करे छे. एकेक प्रदेशनी गणतरी करतां
असंख्य (प्रदेशो) छे.
अहीं कोई प्रश्न करे छे के – जिनागममां ‘लोकप्रमाणप्रदेशो हि
निश्चयेन जिनागमे’ आ प्रमाणे कह्युं छे. आ भेदमां असंख्य कहेतां निश्चय
सिद्ध थतो नथी, (केमके) निश्चयमां भेद सिद्ध थाय नहि?
तेनुं समाधाान : – भेदथी असंख्य (प्रदेश होवानुं) प्रमाण कर्युं,
तेनाथी ओछा के वधारे (प्रदेशो) नथी – आ नियमरूप निश्चय जाणवो.१
कोई प्रश्न करे छे के – एक प्रदेशमां अनंत गुणो छे ते सर्व
प्रदेशोमां छे. (जे अनंत गुणो छे) ते (एक प्रदेशमां) आखा आव्या
के ओछा आव्या?
तेनुं समाधाान : – सर्व प्रदेशोमां ज्ञान छे. प्रदेश जुदा जुदा
✽जुओ, समयसार गुज० पृ. ५०५
१. जुओ, द्रव्यसंग्रह गा. १०.