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उमराळा धाममां रत्नोनी वर्षा,
ऊजमबा-माताना नंदन आनंदकंद,
मोतीचंदभाईना लाडीला सुत अहो!
दुषम काळे अहो! क्हान पधार्या,
विदेहमां जिन-समवसरणना
भरते श्रीकुंदकुंद – मार्ग – प्रभावक
वरस्यां कृपामृत सीमंधरमुखथी,
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त्रिकाळ – मंगळ – द्रव्य गुरुजी,
आत्मा सुमंगळ, द्रगज्ञान मंगळ,
स्वाध्याय मंगळ, ध्यान अति मंगळ,
स्वानुभवमुद्रित वाणी सुमंगळ,
ब्रह्म अति मंगळ, वैराग्य मंगळ,
ज्ञायक – आलंबन – मंत्र भणावी,
आतमसाक्षातकार – ज्योति जगावी,
परमागमसारभूत स्वानुभूतिनो
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द्रव्यस्वतंत्रता, ज्ञायकविशुद्धता
सारा भारतमां अमृत वरस्यां,
श्रुतलब्धि – महासागर ऊछळ्यो.
नगर नगर भव्य जिनालयो ने
क्हानचरणथी सुवर्णपुरनो
‘भगवान छो’ सिंहनादोथी गाजतुं
रत्नचिंतामणि गुरुवर मळिया,
अनंत महिमावंत गुरुराजने
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पावन ए संतनां पादारविंदमां
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आवो आवो पधारो अम आंगणिये;
कल्पवृक्ष फळ्यां अम आंगणिये.
शी शी करुं तुज पूजना, शी शी करुं तुज वंदना; गुरुजी पधार्या आंगणे, अम हृदय उलसित थई रह्यां.
पंचम काळे पधार्या गुरु तारणहार; स्वर्णे बिराज्या सत्य-प्रकाशनहार......कहानगुरु० १. दिव्य तारुं द्रव्य छे ने दिव्य तारुं ज्ञान छे; दिव्य तारी वाणी छे ने अम जीवन-आधार छे.
चैतन्यदेव प्रकाश्या गुरु-अंतरमां; अमृतधारा वरसी सारा भारतमां.....कहानगुरु० २. सूर्य – चंद्रो गगनमां गुणगान तुज करता अहो! महिमाभर्या गुरुदेव छो, शासन तणा शणगार छो.
नित्ये शुद्धात्मदेव – आराधनहार;
ज्ञायकदेवना साचा स्थापनहार......कहानगुरु० ३. श्रुत तणा अवतार छो, भारत तणा भगवंत छो; अध्यात्ममूर्ति देव छो, ने जगत – तारणहार छो.
सूक्ष्म तत्त्वना भावो जाणनहार; मुक्तिपंथना साचा प्रकाशनहार......कहानगुरु० ४. भरी रत्नना थाळो वधावुं भावथी गुरुराजने; भगवंत भाविना पधार्या, सेवक तारणहार छे.
कृपानाथने अंतरनी अरदास, गुरुचरणोमां नित्ये होजो निवास......कहानगुरु० ५.
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उजमबाके राजदुलारेका मंगल अवतार हैः
धन्य-धन्य०
उमरालाके द्वार द्वार पर बाज रही शहनाइयां, ‘मोती’ राजा ‘उजमबा’ घर मंगल गीत बधाइयां; सुर-नर-नारी सब मिल मंगल जन्मोत्सवको मना रहे, बालसुलभ लीलासे देखो सब चितमें हरियालियां;
सूर्यप्रभासे भी अधिका यह अनुपम तव देदार है ।
धन्य-धन्य० १
दिव्य विभूति कहानगुरुजी सिंहकेसरी हैं जागे, धर्मचक्रीकी अमर पताका देशोंदेशमें फहराये; ओ पुराण पुरुषोत्तम तू सर्वांग सुमंगलकार है, तुझ दर्शनसे भारतवासी भाग्यशाली हैं कहलाये;
कल्याणी चिन्मूर्ति पर यह न्योच्छावर सब जगजन है ।
धन्य-धन्य० २
चैतन्यप्रभुका अजब-गजबका रंग गुरुमें छाया है, और उसे ही भक्तोंके अंतस्तलमें फै लाया है, स्वानुभूतियुगस्त्रष्टा तेरी धवलकीर्ति दशदिशव्यापी, साधकका विश्राम गुरु मंगल तीरथ कहलाया है;
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वीतरागके गुप्त ह्रदयकी अंतर्ग्रन्थि खोली है ।
धन्य-धन्य० ३
जनम-जनमका अंत करे तू ऐसा महिमावंत है, करुणामय वात्सल्यमूर्ति गुरु अद्भुत शक्तिवंत हैं; कल्पवृक्ष सम वांछितदाता, भारत-भाग्यविधाता है, तुझ मंगल छायामें जगमें जिनशासन जयवंत है;
कहान-गुरुवर शाश्वत चमको, वन्दन वारंवार है ।
धन्य-धन्य० ४
गुणमूर्ति सीमंधरनन्दन स्वर्णपुरी-शणगार हैं, जीवनशिल्पी नाथ अहो आत्मार्थीके आधार हैं; दुषमकालमें मुक्तिदूत, भविभक्तोंको वरदान है, तेरी स्वर्णिम गुणगणगाथा भवदधितारणहार है;
भवभवमें तुझ दास रहें, बस तू आदर्श हमारा हो;
धन्य-धन्य दिन आज है, मंगलमय सुप्रभात है,
उजमबाके राजदुलारेका मंगल अवतार है । ५