Gurudevshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration).

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मंगलमूरति गुरुजी पधार्या;
अम आंगणिये गुरुजी बिराज्या.
महाभाग्ये मळिया भवहरनारा रे,
अहोभाग्ये मळिया आनंददाता रे,
पंचम काळे पधार्या गुरुदेवा रे,
नित्ये होजो गुरुचरणोनी सेवा रे.....भारतखंडमां० १०.


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१०. स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे
(रागः सीमंधरमुखथी फूलडां खरे)

उमराळा धाममां रत्नोनी वर्षा,

जन्म्या तारणहार रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

ऊजमबा-माताना नंदन आनंदकंद,

शीतळ पूनमनो चंद रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. १.

मोतीचंदभाईना लाडीला सुत अहो!

धन्य माताकुळग्राम रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

दुषम काळे अहो! क्हान पधार्या,

साधकने आव्या सुकाळ रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. २.

विदेहमां जिन-समवसरणना

श्रोता सुभक्त युवराज रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

भरते श्रीकुंदकुंदमार्गप्रभावक

अध्यात्मसंत शिरताज रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ३.

वरस्यां कृपामृत सीमंधरमुखथी,

युवराज कीधा निहाल रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;


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त्रिकाळमंगळद्रव्य गुरुजी,

मंगळमूर्ति महान रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ४.

आत्मा सुमंगळ, द्रगज्ञान मंगळ,

गुणगण मंगळमाळ रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे,

स्वाध्याय मंगळ, ध्यान अति मंगळ,

लगनी मंगळ दिनरात रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ५.

स्वानुभवमुद्रित वाणी सुमंगळ,

मंगळ मधुर रणकार रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे.

ब्रह्म अति मंगळ, वैराग्य मंगळ,

मंगळ मंगळ सर्वांग रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ६.

ज्ञायकआलंबनमंत्र भणावी,

खोल्यां मंगळमय द्वार रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

आतमसाक्षातकारज्योति जगावी,

उजाळ्यो जिनवरमार्ग रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ७.

परमागमसारभूत स्वानुभूतिनो

युग सर्ज्यो उजमाळ रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;


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द्रव्यस्वतंत्रता, ज्ञायकविशुद्धता

विश्वे गजावनहार रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ८.

सारा भारतमां अमृत वरस्यां,

फाल्या अध्यातमफाल रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

श्रुतलब्धिमहासागर ऊछळ्यो.

वाणी वरसे अमीधार रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे. ९.

नगर नगर भव्य जिनालयो ने

बिंबोत्सव उजवाय रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

क्हानचरणथी सुवर्णपुरनो

उज्ज्वळ बन्यो इतिहास रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे.१०.

भगवान छो’ सिंहनादोथी गाजतुं

सुवर्णपुर तीर्थधाम रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;

रत्नचिंतामणि गुरुवर मळिया,

सिद्धयां मनवांछित काज रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे.११.

अनंत महिमावंत गुरुराजने

रत्ने वधावुं भरी थाळ रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे;


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पावन ए संतनां पादारविंदमां

होजो निरंतर वास रे,
स्वर्णभानु भरते ऊग्यो रे.१२


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११. कहानगुरुस्तुति
(रागः धर्मध्वज फरके छे)
क्हानगुरु बिराजो मनमंदिरिये;
आवो आवो पधारो अम आंगणिये;
कल्पवृक्ष फळ्यां अम आंगणिये.

शी शी करुं तुज पूजना, शी शी करुं तुज वंदना; गुरुजी पधार्या आंगणे, अम हृदय उलसित थई रह्यां.

पंचम काळे पधार्या गुरु तारणहार; स्वर्णे बिराज्या सत्य-प्रकाशनहार......कहानगुरु० १. दिव्य तारुं द्रव्य छे ने दिव्य तारुं ज्ञान छे; दिव्य तारी वाणी छे ने अम जीवन-आधार छे.

चैतन्यदेव प्रकाश्या गुरु-अंतरमां; अमृतधारा वरसी सारा भारतमां.....कहानगुरु० २. सूर्यचंद्रो गगनमां गुणगान तुज करता अहो! महिमाभर्या गुरुदेव छो, शासन तणा शणगार छो.

नित्ये शुद्धात्मदेवआराधनहार;

ज्ञायकदेवना साचा स्थापनहार......कहानगुरु० ३. श्रुत तणा अवतार छो, भारत तणा भगवंत छो; अध्यात्ममूर्ति देव छो, ने जगततारणहार छो.

सूक्ष्म तत्त्वना भावो जाणनहार; मुक्तिपंथना साचा प्रकाशनहार......कहानगुरु० ४. भरी रत्नना थाळो वधावुं भावथी गुरुराजने; भगवंत भाविना पधार्या, सेवक तारणहार छे.

कृपानाथने अंतरनी अरदास, गुरुचरणोमां नित्ये होजो निवास......कहानगुरु० ५.


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१२. धन्य-धन्य दिन आज है
धन्य-धन्य दिन आज है, मंगलमय सुप्रभात है,
उजमबाके राजदुलारेका मंगल अवतार हैः
धन्य-धन्य०

उमरालाके द्वार द्वार पर बाज रही शहनाइयां, ‘मोती’ राजा ‘उजमबा’ घर मंगल गीत बधाइयां; सुर-नर-नारी सब मिल मंगल जन्मोत्सवको मना रहे, बालसुलभ लीलासे देखो सब चितमें हरियालियां;

पूर्णचन्द्र सम मुखडा तेरा जग-आकर्षणहार है,
सूर्यप्रभासे भी अधिका यह अनुपम तव देदार है ।
धन्य-धन्य० १

दिव्य विभूति कहानगुरुजी सिंहकेसरी हैं जागे, धर्मचक्रीकी अमर पताका देशोंदेशमें फहराये; ओ पुराण पुरुषोत्तम तू सर्वांग सुमंगलकार है, तुझ दर्शनसे भारतवासी भाग्यशाली हैं कहलाये;

तीर्थ समा पावन मन है, खिला हुआ नन्दनवन है,
कल्याणी चिन्मूर्ति पर यह न्योच्छावर सब जगजन है ।
धन्य-धन्य० २

चैतन्यप्रभुका अजब-गजबका रंग गुरुमें छाया है, और उसे ही भक्तोंके अंतस्तलमें फै लाया है, स्वानुभूतियुगस्त्रष्टा तेरी धवलकीर्ति दशदिशव्यापी, साधकका विश्राम गुरु मंगल तीरथ कहलाया है;


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वाणी अमृत-घोली है, सारी दुनियां डोली है,
वीतरागके गुप्त ह्रदयकी अंतर्ग्रन्थि खोली है ।
धन्य-धन्य० ३

जनम-जनमका अंत करे तू ऐसा महिमावंत है, करुणामय वात्सल्यमूर्ति गुरु अद्भुत शक्तिवंत हैं; कल्पवृक्ष सम वांछितदाता, भारत-भाग्यविधाता है, तुझ मंगल छायामें जगमें जिनशासन जयवंत है;

ज्ञान और वैराग्य-भक्तिका संगम मंगलकार है,
कहान-गुरुवर शाश्वत चमको, वन्दन वारंवार है ।
धन्य-धन्य० ४

गुणमूर्ति सीमंधरनन्दन स्वर्णपुरी-शणगार हैं, जीवनशिल्पी नाथ अहो आत्मार्थीके आधार हैं; दुषमकालमें मुक्तिदूत, भविभक्तोंको वरदान है, तेरी स्वर्णिम गुणगणगाथा भवदधितारणहार है;

शाश्वत शरण तुम्हारा हो, चाहें जगत किनारा हो,
भवभवमें तुझ दास रहें, बस तू आदर्श हमारा हो;
धन्य-धन्य दिन आज है, मंगलमय सुप्रभात है,
उजमबाके राजदुलारेका मंगल अवतार है । ५