Gurudevshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 275.

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गुरुदेवश्रीनां वचनामृत

स्वानुभूति थतां जीवने केवो साक्षात्कार थाय? स्वानुभूति थतां, अनाकुळ-आह्लादमय, एक, आखाय विश्वनी उपर तरतो विज्ञानघन परमपदार्थपरमात्मा अनुभवमां आवे छे. आवा अनुभव विना आत्मा सम्यक्पणे देखातोश्रद्धातो ज नथी, तेथी स्वानुभूति विना सम्यग्दर्शननीधर्मनी शरूआत ज थती नथी.

आवी स्वानुभूति प्राप्त करवा जीवे शुं करवुं? स्वानुभूतिनी प्राप्ति माटे ज्ञानस्वभावी आत्मानो गमे तेम करीने पण द्रढ निर्णय करवो. ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय द्रढ करवामां सहायभूत तत्त्वज्ञाननो द्रव्योनुं स्वयंसिद्ध सत्पणुं ने स्वतंत्रता, द्रव्य-गुण-पर्याय, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य, नव तत्त्वनुं साचुं स्वरूप, जीव अने शरीरनी तद्दन भिन्नभिन्न क्रियाओ, पुण्य अने धर्मना लक्षणभेद, निश्चय-व्यवहार इत्यादि अनेक विषयोना साचा बोधनोअभ्यास करवो. तीर्थंकर भगवंतोए कहेलां आवां अनेक प्रयोजनभूत सत्योना अभ्यासनी साथे साथे सर्व तत्त्वज्ञाननो शिरमोरमुगटमणि जे शुद्धद्रव्यसामान्य अर्थात् परम पारिणामिकभाव एटले के ज्ञायकस्वभावी शुद्धात्मद्रव्यसामान्यजे स्वानुभूतिनो आधार छे, सम्यग्दर्शननो आश्रय छे, मोक्षमार्गनुं आलंबन छे, सर्व शुद्धभावोनो नाथ छेतेनो दिव्य महिमा हृदयमां सर्वाधिकपणे अंकित करवा योग्य छे. ते