Gurudevshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गुरुदेवश्रीनां वचनामृत
१५७

लायकात तैयार थाय छे त्यारे एवुं उत्कृष्ट निमित्त पण तैयार थाय छे.

जे भावे तीर्थंकर नामकर्म बंधाय ते शुभ भाव पण आत्माने (वीतरागतानो) लाभ करतो नथी. ते शुभ राग तूटशे त्यारे भविष्यमां वीतरागता ने केवळज्ञान थशे. महावीर भगवाननो जीव पूर्वे त्रीजा भवमां नग्न दिगंबर भावलिंगी मुनि हतो. त्यां मुनिपणे स्वरूपरमणतामां रमता हता त्यारे, स्वरूप- रमणतामांथी बहार आवतां, एवो विकल्प ऊठ्यो के अहा! आवो चैतन्यस्वभाव! ते बधा जीवो केम पामे? बधा जीवो आवो स्वभाव पामो. वास्तविक रीते एनो अर्थ एम छे केअहा! आवो मारो चैतन्य- स्वभाव पूरो क्यारे प्रगट थाय? हुं पूरो क्यारे थाउं? अंतरमां एवी भावनानुं जोर छे, अने बहारथी एवो विकल्प आवे छे के ‘अहा’ आवो स्वभाव बधा जीवो केम पामे?’ एवा उत्कृष्ट शुभ भावथी तेमने तीर्थंकर नामकर्म बंधाई गयुं.

महावीर भगवानने केवळज्ञान थयुं पण वाणी छासठ दिवस पछी छूटी. केवळज्ञान त्रण काळ, त्रण लोक, स्व-पर समस्त द्रव्यो तेम ज तेमना अनंत भावोने युगपद एक समयमां हस्तामलकवत् अत्यंत स्पष्टपणे जाणे छे. भगवाने दिव्यध्वनिमां कह्युं छे