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पंचमकाळे अहोभाग्य खील्यां छे,
वंदन होजो अनंत.....उजमबा० ९.
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३. गुरुजीनी वाणी
सागर ऊछळ्यो ने जाणे ल्हेरीओ चडी;
गुरुजीनी वाणी एवी गगने अडी.
पंखी उडता’तां हती एक आशडी;
तरस्युं छीपे जो मळी मीठी वीरडी....सा०
झांझवानां जळथी छीपी नहि तरसडी;
एवां मिथ्या नीरनी ज्यारे खबरुं पडी....सा०
तरस्या जीवोने सत्य वाट सांपडी;
के खारा समुद्रे छे एक मीठी वीरडी....सा०
आत्मधर्म बोध्यो छिपावी तरसडी;
अज्ञान सुमद्रे छो कहान ज्ञान-वीरडी....सा०
विनवुं प्रभु आपने हुं पायले पडी;
अविचळ व्हेजो ए मारी मीठी वीरडी....सा०
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४. गुरुदेव उपकार
(मंदाक्रान्ता)
ज्यां जोउं त्यां नजर पडतां राग ने द्वेष हा! हा!
ज्यां जोउं त्यां श्रवण पडती पुण्य ने पाप गाथा;
जिज्ञासुने शरण स्थळ क्यां? तत्त्वनी वात क्यां छे?
पूछे कोने पथ पथिक ज्यां आंधळा सर्व पासे.