[ ९ ]
औदार्यने तें आदरी जगमां जणाव्युं बोलथी;
आचारमां मूकी घणुं जोयुं अनुभव तोलथी.७.
तारा हृदयनी गूढता त्यां मूढ जननी मूढता;
जे आत्मयोगी होय ते जाणे खरे तव शुद्धता.८.
पहोंच्यो अने पहोंचाडतो तुं लोकने शुद्ध भावमां;
अध्यात्मरसिया जे थया, बेठा खरे शुद्ध नावमां.९.
दुनिया थकी डरतो नथी, आशा नथी ममता जरी;
ज्यां हुं वसुं त्यां तुं नहीं, ए भावना विलसे खरी.१०.
स्याद्वाद पारावार छे, आनंद अपरंपार छे;
साचा हृदयनो संत छे, परवा नथी जयकार छे.११.
आशा नथी कीर्ति तणी, अपकीर्तिने गणतो नथी;
लोको मने ए शुं कहे त्यां लक्षने देतो नथी.१२.
व्यवहारना भेदो घणा त्यां क्लेशने करतो नथी;
लागी लगनवा आत्मनी, बीजुं कशुं जोतो नथी.१३.
तें भावसंयम बोटमां बेसी प्रयाण ज आदर्युं;
भवपथ-उदधि तरवा विशे तें लक्ष अंतरमां धर्युं.१४.
जे जे भर्युं तुज चित्तमां, ते बाह्यमां देखाय छे;
अध्यात्मरसरसिया जनोथी तुज हृदय परखाय छे.१५.
एकांतथी अध्यात्ममां जे शुष्क थईने चालतो,
चाबुक तेने मारीने व्यवहारमांही वाळतो.१६.
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