प्रभु! स्वपर-प्रकाशक नाथ छो रे,
चिन्मूरत आतमराम,
आज मीठां०...८
दिव्य ज्ञानसागर ऊछळी रह्या रे,
गुण अंतरमां रमनार,
आज मीठां०...९.
चक्रधर हलधर सेवा करे रे,
सुणे जिनेन्द्रना दिव्य नाद,
आज मीठां०...१०.
देवेन्द्रो नरेन्द्रो प्रभु पूजता रे,
मुनिराजो जिनेन्द्रगुण गाय,
आज मीठां०...११.
प्रभुमहिमा अहो अद्भुत छे रे,
ते मुखथी केम कथाय?
आज मीठां०...१२.
कल्याणक त्रण गिरनारमां रे,
तप केवळ मोक्षस्वरूप,
आज मीठां०...१३.
प्रभु परमवैरागी तीर्थंकरा रे,
जिननाथ देवाधिदेव,
आज मीठां०...१४.
तीर्थ गिरनारथी मुक्ति गया रे,
गया कोटि कोटि कुमार,
आज मीठां०...१५.
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