४७. सुरेन्द्रो आवो....स्वाधयायमंदिरे ©तरो
सुरेन्द्र आवो गगनना स्वाध्यायमंदिरे ऊतरो;
भगवान श्री कुन्दकुन्दना जयनाद गजवो जगतमां.
अध्यात्ममूर्ति ‘कहान’ना जयनाद गजवो जगतमां..... १.
गुरुराज आप पधारीने, स्वाध्याय-द्वार खोलावियां;
कुन्दकुन्दकृत समयसारना जयनाद गाज्या जगतमां.....सुरेन्द्र० २.
मा! तुं अमारी सरस्वती, स्थापन थयुं मा! ताहरुं,
शी शी करुं तारी स्तुति, तुं जीवनदात्री भगवती.....सुरेन्द्र० ३.
सत्यार्थ वस्तु प्रकाशकर, शासन तणा सिंह-केसरी;
कुन्दकुन्दकृत प्राभृत तणी सरिता वहावी राजवी.....सुरेन्द्र० ४.
भगवान श्री कुन्दकुन्द ने समयसारजी दातार छो;
शास्त्रो तणा मर्मज्ञ छो, साक्षात् श्री गुरुकहान छो.....सुरेन्द्र० ५.
संगीत मधुर रेलाववा स्वर्गीय वाद्यो साथमां,
आवो गवैया स्वर्गना, सुवर्णना मेदानमां.....सुरेन्द्र० ६.
रे! आवजो, सहु आवजो, ग्रंथाधिपति-गुणगानमां;
रे! आवजो, सहु आवजो, गुरुकहानना स्तुतिगानमां;
लई भाग आज होंशथी, जयवंत होजो जीवनमां.....सुरेन्द्र० ७.
भाग्ये पधार्या भरतमां, (नित्य) गुरुजी बिराज्या स्वर्णमां;
सांनिध्य मळियां संतनां, अहो! भविक-तारणहारनां.....सुरेन्द्र० ८.
अद्भुत अनुपम ज्ञान छे, चिदरसभरी गुरुवाण छे;
महिमाभर्या गुरुराज छे, चिंतित फळ दातार छे.....सुरेन्द्र० ९.
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