Gurustutiaadisangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). 48. SHREE PRANAV-MAHATMYA.

< Previous Page   Next Page >


Page 63 of 95
PDF/HTML Page 71 of 103

 

background image
४८. श्री प्रणव-माहात्म्य
ॐकारं बिन्दुसंयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः
कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमो नमः ।।
(धनाक्षरी)
‘ॐकार’ शबद विशद याके उभयरूप,
एक आतमीक भाव एक पुदगलको;
शुद्धता स्वभाव लिये उठ्यो राय चिदानंद,
अशुद्ध विभाव लै प्रभाव जडबलको;
त्रिगुण त्रिकाळ तातैं व्यय-ध्रुव-उतपात,
ज्ञाताको सुहात बात नहीं लाग खलको;
बनारसिदासजूके हृदय ‘ॐकार’ वास,
जैसो परकाश शशि पक्षके शुकलको. १.
निरमल ज्ञानके प्रकार पंच नरलोक,
तामें श्रुतज्ञान परधान करी पायो है;
ताके मूल दोषरूप अक्षर अनक्षरमें,
अनक्षर अग्र पिंड, सैनमें बतायो है;
बावन वरण जाके असंख्यात सन्निपात,
तिनिमें नृप ‘ॐकार’ सज्जन सुहायो है;
बनारसिदास अंग द्वादश विचार यामें;
ऐसो ‘ॐकार’ कंठ पाठ तोहि आयो है. २.
महामंत्र ‘गायत्री’के मुख ब्रह्मरूप मंड्यो,
आतमप्रदेश कोई परम प्रकाश है;
ता पर अशोक वृक्ष छत्र ध्वज चामर सो,
पवन अगनि जल वसै एक वास है;
[ ६३ ]