५९. गुरुदेव प्रत्ये क्षमापना – स्तुति
गुरुदेव! तारां चरणमां फरी फरी करुं हुं वंदना,
स्थापी अनंतानंत तुज उपकार मारा हृदयमां. १.
करीने कृपाद्रष्टि, प्रभु! नित राखजो तुम चरणमां,
रे! धन्य छे ए जीवन जे वीते शीतळ तुज छांयमां. २.
गुरुदेव! अविनय कंई थयो, अपराध कंई पण जे थया,
करजो क्षमा अम बाळने, ए दीनभावे याचना. ३.
मन - वचन - काय थकी थया जाण्ये-अजाण्ये दोष जे,
करजो क्षमा सौ दोषनी, हे नाथ! विनवुं आपने. ४.
तारी चरणसेवा थकी सौ दोष सहेजे जाय छे,
क्रोधादि भाव दूरे थई भावो क्षमादिक थाय छे. ५.
गुरुवर! नमुं हुं आपने, अम जीवनना आधारने,
वैराग्यपूरित ज्ञान - अमृत सींचनारा मेघने. ६.
मिथ्यात्वभावे मूढ थई निजतत्त्व नहि जाण्युं अरे!
आपी क्षमा ए दोषनी आ परिभ्रमण टाळो हवे. ७.
सम्यक्त्व - आदिक धर्म पामुं, तुज चरण - आश्रय वडे;
जय जय थजो प्रभु! आपनो, सौ भक्त शासनना चहे. ८.
✽
[ ७७ ]