कहानगुरुने श्रुतसागर ऊछळ्या,
अमृत वरस्या मेह,....वीर० १५.
आतम-आधार ए अम सेवकना,
शिवपुरनो ए साथ,....वीर० १६.
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६४. वीरजीनी वाणी छूटी रे
वीर सभामां आज गौतम पधार्या, अमृत वरस्या मेह रे;
वीरजीनी वाणी छूटी रे.
वैशाख मासथी वादळ चड्यां, आज आषाढे वरस्यो मेह रे;
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....वीरसभामां० १.
देव दुंदुभीनाद गगडिया, इंद्र-इंद्राणी हरखाय रे;
वीरजीनी वाणी छूटी रे;
रत्न अमोलख गणधरदेवश्री, शोभाव्यां शासन रे,
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....वीरसभामां० २.
तरस्यां-चातक – देव-मानव-तिर्यंचनी, तत्त्वपिपासा छिपाय रे,
वीरजीनी वाणी छूटी रे;
संसारतापना दुःखदावानळ, एकीक्षणे बुझाय रे,
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....वीरसभामां० ३.
दर्शन-ज्ञान ने चारित्र केरा, मोंघेरा फाल्या फाल रे,
वीरजीनी वाणी छूटी रे;
मोंघो मारग ज्यां मुक्ति तणो त्यां, जीवोनां जूथ उभराय रे,
वीरजीनी वाणी छूटी रे.....वीरसभामां० ४.
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