त्रीश वर्षे तप आदर्यां, लीधां केवळज्ञान,
अगणित भव्य उगारीने, पाम्या पद निर्वाण.
प्रभुजी! आपे तो पोतानो स्वारथ साधियो रे,
अम बाळकनी आपे लीधी नहीं संभाळ;
अमने केवळना विरहमां मूकी चालिया रे. आजे० ३.
तोपण तुज शासनमहीं, पाक्यां अमोलख रत्न,
कुंदामृत-गुरुकहान छे, शासनधोरी नाथ!
जेणे तुज शासनने अणमूल ओप चडाविया रे,
जे छे अम सेवकना आतम-रक्षणहार,
जेणे भारतना भव्योने चक्षु आपियां रे. आजे० ४.
भरते वीरप्रभुनुं शासन आजे झूली रह्युं रे,
ते छे कहानगुरुनो परम परम प्रताप,
जेणे वीरप्रभुनो मुक्तिमार्ग शोभावियो रे,
जेनी वाणीथी जयकार नादो गाजता रे. आजे० ५.
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६६. संदेश देजे गुरुदेवने
[प्रशममूर्ति भगवती पूज्य बहेनश्री चंपाबेनना भक्तिपूर्ण हृदयमांथी वहेलुं]
(राग – अपूर्व अवसर एवो...)
चांदलिया! संदेश देजे गुरुदेवने,
(शशियर! संदेशो देजे गुरुदेवने,)
वसी रह्या छे स्वर्गपुरीने धाम जो;
वैमानिक स्वर्गे मुज गुरुजी बिराजता,
इन्द्र सरीखा शोभी रह्या ए देव जो....चांदलिया! १.
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