६९. स्वर्णमयी वधामणां
(राग – आवो आवो सीमंधर जिनराजजी रे)
स्वर्णपुरीमां स्वर्णमयी वधामणां रे, (२)
सीमंधर भगवंत (आज) पधार्या मंदिरे.
आवो पधारो विदेही जिनराजजी रे,
— सीमंधर जिनराजजी रे,
मणिरत्ने वधावुं त्रिभुवननाथने....स्वर्ण० १.
विदेहक्षेत्रे सीमंधरनाथ बिराजता रे, (२)
आज पधार्या स्वर्णपुरीना मंदिरे;
आज पधार्या भरतभूमिना आंगणे;
देव-देवेन्द्रो आवे जिनवर पूजवा रे, (२)
विधविध रत्ने वधावे जिनवरदेवने....स्वर्ण० २.
पंचकल्याणक स्वर्णपुरीमां शोभतां रे, (२)
दैवी द्रश्यो नजरे निहाळ्यां नाथनां;
पुनित प्रसंगो महिमावंत भगवंतनां;
आकाशे बहु देवदुंदुभि वागतां रे, (२)
गंधर्वोनां गीत मधुरां गाजतां;
कुमकुम-केशर स्वर्णपुरे वरसी रह्यां रे, (२)
आकाशे बहु रंग अनेरा शोभता....स्वर्ण० ३.
श्रेयांसराया-सत्यमाताना नंद छो रे, (२)
पुंडरपुरमां जन्म प्रभुना शोभता;
समवसरणमां विदेहीनाथ बिराजता रे, (२)
दिव्यध्वनिना अमृतरस वरसी रह्या....स्वर्ण० ४.
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