अशोक तरुवर उन्नत अति सोहामणां रे, (२)
भव्य हृदयने आनंदरस उपजावतां;
जिनजी-प्रतापे आनंदरस वरसी रह्या;
जिनजी मारा, रत्नसिंहासन शोभता रे, (२)
दिव्य कमळमां अंतरीक्ष बिराजता....स्वर्ण० ५.
जिनजी मारा वीतरागी पद पामिया रे, (२)
अनंतगुणोना बाग अहो! खीली रह्या;
जिनजी मारा केवळज्ञाने शोभता रे, (२)
स्वपरप्रकाशक ज्ञान अहो! झळकी रह्यां ....स्वर्ण० ६.
दिव्य गुणाकर देव पधार्या आंगणे रे, (२)
दिव्य रविनां तेज अहो! प्रसरी रह्यां;
जिनमुद्रामां उपशमरस वरसी रह्या रे, (२)
अनुपम आनंदपूर्ण स्वरूपने पामिया....स्वर्ण० ७.
त्रण भुवनना नाथ पधार्या आंगणे रे, (२)
विश्ववंद्य भगवंत अमारे मंदिरे;
इन्द्र-नरेन्द्रो जिनचरणोने पूजता रे, (२)
त्रण भुवनमां जिनवरगुण गाजी रह्या;
— जिनेन्द्रभवने जिनस्तवनो गुंजी रह्यां....स्वर्ण० ८.
पंचम काळे जिनवरदर्शन दोह्यलां रे, (२)
विचरंता भगवंत पधार्या आंगणे;
भरतभूमिमां विरह हता वीतरागना रे, (२)
सौराष्ट्रदेशे विरह हता वीतरागना रे, (२)
आज पधार्या जिनवर मारे मंदिरे....स्वर्ण० ९.
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