Hoon Parmatma-Gujarati (Devanagari transliteration). Pravachan: 45.

< Previous Page  


Combined PDF/HTML Page 13 of 13

 

Page 230 of 238
PDF/HTML Page 241 of 249
single page version

background image
२३०] [हुं
पण तुं सर्वज्ञस्वभावी छो, दशामां भले अल्पदर्शन हो पण सर्वदर्शित्व स्वभाव
अंदरमां छे, पर्यायमां भले अल्पवीर्य छे पण आत्मा अनंतवीर्यनुं धाम छे, पर्यायमां
राग-द्वेषनी विपरीतता होवा छतां आत्मा वीतराग आनंदनो कंद छो. तुं नानो नथी
भाई! तुं मोटो छो. तुं पोते अर्हंतस्वरूपे बिराजमान छो विश्वास कर!
आत्मदरबारमां अनंता...अनंता गुणो सदाय शक्तिरूपे बिराजमान छे. ते एक
एक गुणनी अनंत पर्याय तो छे पण तेनी शक्ति पण अनंत छे. भाई! आवो ज
वस्तुनो स्वभाव छे कांई कल्पनाथी वात वधारीने तने कहेतां नथी. वस्तु जेवी छे
तेवी तने कहीए छीए.
मुनिराज कहे छे सिद्धनुं ध्यान कर! एटले के तारा सिद्धस्वरूपनुं ध्यान कर-तेमां
एकाग्रता कर! एटले के सम्यक् श्रद्धा-ज्ञान अने चारित्र प्रगट कर!
तुं आचार्यनुं ध्यान कर! अंतरमां पंचाचारनुं पालन करवुं ते आचार्यपणुं छे.
बहारमां शिष्योने शिक्षा-दीक्षा देवाना भाव आवे ते आचार्यपणुं नथी. ए तो राग छे.
आचार्य ते वीतरागीपर्याये परिणमेलुं पद छे. एवी पर्यायो पण तारा अंतरमां छे माटे
तुं आचार्यनुं खरुं स्वरूप ओळखी तेमां लीन थई जा, तो तुं पोते आचार्य बनी
जईश. उपाध्याय स्वरूप पण तुं ज छो भाई! वीतरागी द्रव्य, वीतरागी गुण अने
गुणस्थान प्रमाणे प्रगटेली वीतरागी पर्याय सहितनुं द्रव्य ते उपाध्याय छे. एवा
उपाध्याय स्वरूप आत्मानुं ध्यान करवुं.
जे पूर्ण स्वभावने साधे छे ते ‘साधु’ छे. साधुने २८ मूळगुणनो राग छे पण
ते राग स्वभावने साधतो नथी. स्वभावने साधे एवी वीतरागी पर्याय तुं प्रगट कर!
काले रात्रे सरस प्रश्न थयो हतो के केवळी कोनुं ध्यान करे छे? केवळीने तो मोह
नथी अने पदार्थोनुं ज्ञान पूरुं छे तो ध्यान कोनुं? भाई! ए तो अनंत अतीन्द्रिय
आनंदने अनुभवे छे ने! ए ज तेनुं ध्यान कहो के अनुभव कहो, एक ज छे.
प्रवचनसारनी ज्ञेय अधिकारनी छेल्ली गाथाओमां आ वात आवे छे.
आ बधी सत् वस्तुनी वात छे, कल्पना नथी. षट्खंडागममां पहेली ज वात
लखी छे के’ सत्पद् प्ररूपणा’ जे छता-सत् पदार्थ छे तेनुं वाणीमां कथन करीए छीए.
भगवान आत्मा अकषाय वीतरागरसथी भरपूर छे तेथी तेनी प्राप्ति पण
वीतरागदशा द्वारा ज थाय छे. रागथी वीतरागस्वभाव प्राप्त न थाय. आत्मा
पंचपरमेष्ठी स्वरूप छे तेथी आत्मानुं ध्यान करतां तेमां पांचेय परमेष्ठीनुं ध्यान
गर्भीत छे.
अर्हंतनुं लक्ष करतां समवसरण अने वाणी आदि लक्षमां न लेतां वीतरागी
पर्यायरूपे परिणमेलुं अर्हंतनुं द्रव्य लक्षमां लेवुं. सिद्ध तो परिपूर्ण जेवुं द्रव्य छे तेवी ज
पर्याये परिणमेला छे, तेनुं लक्ष करवुं. आचार्यनुं लक्ष करतां तेमनां विकल्प, वाणी अने
रागथी रंजित परिणाम लक्षमां न लेवा, पण तेनो आत्मा जे वीतरागी पर्यायरूपे
परिणमेलो छे

Page 231 of 238
PDF/HTML Page 242 of 249
single page version

background image
परमात्मा] [२३१
ते लक्षमां लेवो. ए ज रीते उपाध्याय अने साधुनी पण बहारनी क्रिया लक्षमां न
लेतां मात्र तेमनी आत्म-आराधनानी क्रिया आराधवालायक छे.
समयसार कळशनो आधार आप्यो छे के आत्मानुं स्वरूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान -
चारित्रमय एकरूप छे ते ज एक मोक्षमार्ग छे. निर्विकल्प मोक्षमार्ग एक ज छे.
मोक्षमार्गनुं निरूपण बे प्रकारे छे पण निश्चय मोक्षमार्ग एक ज छे. तेथी मोक्षना
अर्थीने उचित छे के आ एक स्वानुभवरूप मोक्षमार्गनुं सेवन करे.
अज्ञानीने ज्यां सुधी मोटी द्रष्टिए मोटो भगवान आत्मा हाथमां न आवे त्यां
सुधी रमणतां क्यां करवी ते खबर पडती नथी. मोटी द्रष्टि एटले सम्यक् द्रष्टि के जे
महान द्रष्टि छे तेना वडे महान एवा भगवान आत्मानी श्रद्धा थाय त्यारे तेमां रमण
क्यां करवुं तेनुं भान थाय छे. आवुं सम्यग्दर्शन थया पछी पण अमृतचंद्र आचार्य ८०
मी गाथामां कहे छे के प्रमादरूपी चोर मारी संपदा लूंटी न जाय ते माटे हुं सावधान
रहुं छुं-प्रमाद छोडीने पुरुषार्थनी केड बांधीने बेठो छुं.
वीतरागदेव त्रिलोकीनाथनी वाणीमां आ तत्त्व आव्युं छे भाई! केवलीपणंतो
धम्मो शरणं’ केवलीप्ररूपित धर्म ज मंगल, उत्तम अने शरण छे. आ बधुं शरण तारा
आत्मामां ज पडयुं छे भाई! भगवानने याद करवा ए तो राग छे पण रागरहित
निजस्वरूपनुं शरण ले त्यारे खरुं अरिहंत अने सिद्धनुं शरण लीधुं कहेवाय.
हवे १०प मी गाथामां योगीन्द्रदेव कहे छे के आत्मा ब्रह्मा, विष्णु अने महेश छे.
सो सिउ संकरु विण्हु सो सो रुद् वि सो बुद्धु ।
सो जिणु ईसरु बंभु सो सो अणंतु सो सिद्धु ।। १०५।।
ते शिव, शंकर, विष्णु ने रुद्र, बुद्ध पण ते ज;
ब्रह्मा, ईश्वर, जिन ते, सिद्ध, अनंत पण ते ज. १०प.
आत्मा...आत्मा...नी वात तो घणां कहे छे पण अहीं जे कहेवाय छे- ‘आत्मा
एक असंख्य प्रदेशी वस्तु छे. जेमां आकाशना अनंतानंत प्रदेश करतां पण अनंतगुणा
गुण छे अने एटली ज तेनी पर्यायो छे-आवो आत्मा वेदांत आदि कोई मतमां कह्यो
नथी. अज्ञानीओए तो असर्वांशमां सर्वांश मान्युं छे. अहीं तो सर्वांशे आखी चीज
जेवी छे तेवी कहेवाय छे. आवो जे आत्मा छे ते पांच परमेष्ठीरूपे परिणमे छे तेने ज
अहीं ब्रह्मा, विष्णु अने महेश कह्यो छे.
आगळनी गाथामां जे पंचपरमेष्ठीना स्वरूपे ध्याववा योग्य कह्यो ते आत्मा ज
ब्रह्मा, शिव, शंकर, विष्णु, रुद्र, बुद्ध, ईश्वर, जिन अने अनंत छे, तेना सिवाय बीजो
कोई ब्रह्मा आदि नथी. अरे भाई! आ तो वस्तुनी स्थिति छे. भगवाने जोयुं बीजुं
अने कह्युं बीजुं एवुं नथी. छ प्रकारना द्रव्यो जेवा जोयां तेवा ज भगवाने कह्यां छे.
आत्मा ज शिव छे केम के आत्माना श्रद्धा, ज्ञान अने ध्यान करवाथी कल्याण थाय छे.

Page 232 of 238
PDF/HTML Page 243 of 249
single page version

background image
२३२] [हुं
भगवान आत्मा आनंद देनारो छे माटे आत्मा ज शंकर छे. आत्मा ज्ञान प्रमाण छे,
ज्ञान ज्ञेय प्रमाण छे, माटे आत्मा लोकालोक प्रमाण छे एटले के क्षेत्रथी नहि पण
केवळज्ञाननी अपेक्षाए आत्मा लोकालोक व्यापक छे माटे आत्मा ज विष्णु छे.
आत्मा ज रुद्र छे केम के जेम रुद्र बीजानो नाश करे छे तेम आत्मा आठ
कर्मोनो नाश करे छे. आत्मा ज बुद्ध छे. एक समयमां पूर्णानंदनो नाथ आत्मा पूर्ण
ज्ञानरूपे परिणमे छे अने एवी एवी अनंती शक्तिओ आत्मामां रहेली छे माटे
आत्मा ज बुद्ध कहेवाय. आवा आत्माने जे मानता नथी अने क्षणिक पर्यायने ज
आत्मा माने छे ते मान्यता तद्न खोटी अज्ञानभाव छे...संसारभाव छे.
गांधीजीए श्रीमद्ने प्रश्न कर्यो हतो के आ बौद्ध थई गया ते मोक्ष पाम्या छे के
नहि? तो श्रीमदे् कह्युं के बौद्धना शास्त्र अने लखाण जोतां तेमने मुक्ति होय शके नहि
अने आ सिवाय बीजा कोई तेना अभिप्राय होय ते आपणने जाणवा न मळे त्यां
सुधी आपणे केम नक्की करी शकीए? पण एमणे जे अभिप्रायो कह्यां छे ते उपरथी
तो ते मुक्ति पाम्यां नथी. श्रीमद्ने २७ वर्ष थया हता त्यारे गांधीजीए २७ प्रश्नो
पूछयां हतां तेमां एक आ प्रश्न हतो.
जे परम कृतकृत्य सर्व प्रकारनी ईच्छाथी रहित छे अने अविनाशी परमेश्वर
शक्तिनो धारक छे ते परमेश्वर परमात्मा ज साचा ब्रह्मा छे, अतीन्द्रिय आनंद- स्वरूपमां
लीन छे अने पोताना स्वरूपना कर्ता छे माटे ब्रह्मा छे. जगतना कर्ता कोई ब्रह्मा नथी.
आम, ब्रह्मा, विष्णु आदि हजारो नाम लईने भावना करनारो आत्मानी
भावना करी शके छे पण सार ए छे के आत्मानुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं लक्षमां लईने
तेनुं ध्यान करवुं तेनुं नाम खरेखर ध्यान अने संवर-निर्जरा छे.
जेम निर्मळ क्षीरसमुद्रमां निर्मळ तरंगो ज ऊठे छे तेम शुद्धात्मामां सर्व प्रवर्तन
शुद्ध ज होय छे. भगवान आत्मा शुद्ध गुण स्वरूपे छे तेनी दशा थाय ते पण शुद्धरूपे
ज परिणमे छे. जेवा गुण छे तेवी ज पूर्ण पर्याय प्रगट थाय त्यारे तेने बुद्ध, जिन,
ईश्वर आदि नामो अपाय छे.
हवे १०६ मी गाथामां योगीन्दु मुनिराज कहे छे के परमात्मा जेवो देव आ
देहमां पण छे; ते देहवासी देवमां अने परमात्मामां कांई फेर नथी.
एव हि लक्खण–लखियउ जो परु णिक्कलु देउ ।
देहहं मज्झहिं सो वसइ तासु ण विज्जइ भेउ ।। १०६।।
एवा लक्षणयुक्त जे, परम विदेही देव;
देहवासी आ जीवमां ने तेमां नथी फेर.
१०६.
आगळनी गाथामां जे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शंकर आदि लक्षणोथी परमात्मानुं
स्वरूप कह्युं तेना जेवो ज देव आ देहमां वसे छे. परमात्मामां अने देहवासी देहमां
खरेखर कांई फेर नथी.

Page 233 of 238
PDF/HTML Page 244 of 249
single page version

background image
परमात्मा] [२३३
परमात्मानुं जे स्वरूप कह्युं तेवुं स्वरूप प्रभु! तारा गर्भमां पण पडयुं छे.
भगवान! तारा पेटमां आवा परमात्मा बिराजे छे. पर्यायद्रष्टिमां भले परमात्मामां
अने तारामां फेर होय पण वस्तुद्रष्टिए तारा आ देहवासी देवमां अने निरंजन
परमात्मामां कांई फेर नथी.
एक वीतरागी भगवान सिवाय एवुं कोण कहे के ‘मारा उपरथी लक्ष छोड
अने तुं तारुं लक्ष कर तो परमात्मा थईश.’ मोढां सामेनो कोळियो एक भगवानने
गोठतो नथी, बीजा बधाने तो गोठे छे. बधां पहेलां पोताना मोढामां कोळियो मूके
पछी बीजाना मोढामां मूके त्यारे अहीं तो भगवानने मान जोईतुं नथी. भगवान कहे
छे के तुं अमारुं लक्ष करीश तो तने राग थशे. तुं तारुं लक्ष कर! अमारी भक्तिथी
तारुं कल्याण नहि थाय. तुं तारो आश्रय कर तो तारुं कल्याण थशे. तारा देहमां
परमात्मा जेवो ज भगवान बिराजमान छे माटे तुं परमात्मामां अने तारामां भेद न
जाण!
पूर्वोपार्जित दुर्निवार कर्मना उदयवशे कोई इष्ट
मनुष्यनुं मरण थतां जे अहीं शोक करवामां आवे छे ते
अतिशय पागल मनुष्यनी चेष्टा समान छे. कारण के ते
शोक करवाथी कांई पण सिद्ध थतुं नथी परंतु तेनाथी
केवळ ए थाय छे के ते मूढ बुद्धिवाळा मनुष्यना धर्म
अर्थ अने कामरूपथी पुरुषार्थ आदि ज नष्ट थाय छे.
(श्री पद्मनंदि-पंचविंशति)

Page 234 of 238
PDF/HTML Page 245 of 249
single page version

background image
२३४] [हुं
[प्रवचन नं. ४प]
सिद्धपदनी प्राप्तिनो एक मात्र उपायः
निज–परमात्मदर्शन
[श्री योगसार शास्त्र उपर परम पूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन, ता. २७-७-६६]
आ श्री योगसार शास्त्र छे. तेमां अहीं १०६ गाथा चाले छे. आगळनी
गाथामां पांच परमेष्ठी अने ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शंकर आदि लक्षणोथी परमात्मानुं
स्वरूप वर्णव्युं. हवे योगीन्द्रदेव कहे छे के एवा जे परमात्मा छे तेमां अने आ देहवासी
जीवमां कांई फेर नथी.
एव हि लक्खण–लखियउ जो परु णिक्कलु देउ ।
देहहं मज्झहिं सो वसइ तासु ण विज्जइ भेउ ।। १०६।।
एवा लक्षणयुक्त जे, परम विदेही देव;
देहवासी आ जीवमां ने तेमां नथी फेर.
१०६.
आत्मामां कर्मना निमित्तनां संबंधमां विविधता-विचित्रता पर्यायमां छे छतां ते
द्रष्टिने-लक्षने बंध राखी, वस्तुद्रष्टिए-द्रव्यस्वभावे असली चैतन्यबिंब आत्मा
परमात्मा छे एम साधक जीवे वस्तुनी निश्चयद्रष्टि करवी.
व्यवहारनयथी जीवनी पर्यायमां एकेन्द्रियथी मांडीने पंचेन्द्रिय सुधीमां जे अनेक
प्रकारना भेदो छे तेने ज्ञानमां जाणवा. ए भेदो पर्यायमां पण नथी एम नथी पण
द्रव्यस्वभावमां ए कोई भेदो नथी. द्रव्यस्वभावे आत्मा परमात्मा ज छे एम निश्चय
करवो. जे कांई भेद देखाय छे ते व्यवहारथी छे पण परमार्थ वस्तुद्रष्टिए जोतां वस्तुमां
ए कोई भेदो नथी.
व्यवहारना बधा भेदोनो अभाव करीने नहि पण तेने गौण करीने जेम
साधकजीव पोताने स्वभावे शुद्ध परिपूर्ण जुए छे तेम दरेक जीवने शुद्ध परिपूर्ण
परमात्मा तरीके जोवा. कारण के समभाव ए ज मोक्षनो उपाय छे. वस्तु एक ज्ञानघन
शुद्ध ज छे एम अंतरमां जोवुं, जाणवुं अने अनुभववुं ते मोक्षनो उपाय छे.
जे कोई पोताना शुद्ध स्वरूपना अनुभवथी छूटीने परभावमां आत्मपणानी
कल्पना करे छे एटले के भगवान आत्मा ज्ञाता-द्रष्टा, शुद्ध आनंदकंदनी द्रष्टि छोडीने
वर्तमान अल्पज्ञ-परिणाम अने पुण्य-पापना परिणाममां आत्मबुद्धि करे छे ते
स्वरूपथी भ्रष्ट थाय छे अने मिथ्यात्व, कषायादिने ग्रहण करे छे.

Page 235 of 238
PDF/HTML Page 246 of 249
single page version

background image
परमात्मा] [२३प
‘हुं असंख्य प्रदेशी छुं’ एवुं लक्ष करवुं ते पण भेद छे, विकल्प छे, तेथी ज
पंचास्तिकायमां तो लीधुं छे के हुं एक प्रदेशी एकरूप वस्तु छुं. असंख्यप्रदेश होवां छतां
वस्तु अभेद छे पण तेनो अर्थ एम नथी के आत्मा असंख्यप्रदेशी छे ते व्यवहारथी
छे. असंख्य प्रदेश तो निश्चयथी छे पण तेनो भेद-विचार करवो ते व्यवहार छे. ४७
शक्तिमां एक ‘नियतप्रदेशत्व’ शक्ति छे एटले असंख्य प्रदेश नियत छे. पण
अभेदद्रष्टिमां भेद देखाता नथी. अभेदमां भेद नथी एम नथी पण अभेदद्रष्टिमां
भेदनुं लक्ष करे तो विकल्प ऊठे अने राग थाय तो अभेद्रष्टि ज रहेती नथी.
एके एक वातनी चोखवट करीने आचार्यदेवे सत्ने घणुं स्पष्ट कर्युं छे. असंख्य
प्रदेशमां आत्माना अनंत गुणो पथरायेला छे. एक प्रदेशनो बीजा प्रदेशमां अभाव छे.
व्यवहारने भूली जवानो नथी पण गौण करीने स्वभावनी द्रष्टि करवानी छे.
व्यवहारनो अभाव करे तो ते वस्तु ज न रहे. वीतरागशासन आवुं छे भाई!
हवे १०७ मी गाथामां मुनिराज कहे छे के आत्मानुं दर्शन ज सिद्ध थवानो उपाय छे.
जे सिद्धा जे सिज्झिहिं जे सिज्झहि जिण–उत्तु ।
अप्पा–दंसणि ते वि फुडु एहउ जाणि णिभंतु ।। १०७।।
जे सिद्धया ने सिद्धशे, सिद्ध थतां भगवान;
ते आतमदर्शन थकी, एम जाण निर्भ्रान्त.
१०७.
जे कोई सिद्ध थई गया, भविष्यमां थशे अने वर्तमानमां महाविदेहमांथी सिद्ध
थई रह्यां छे ते बधा आत्मदर्शनथी ज मुक्ति पामे छे. मुनिराजे त्रणेय काळनी वात लई
लीधी छे. अनंत सिद्ध थया, अनंत सिद्ध थशे अने वर्तमानमां सिद्ध थाय छे ते बधा
आत्मअनुभवथी ज थाय छे. त्रणेय काळमां एक ज मार्ग छे ए वात आमां आवी गई.
‘एक होय त्रणकाळमां, परमारथनो पंथ’ आ वातने संदेह रहितपणे तुं मान!
मोक्ष ए आत्मानो पूर्ण स्वभाव छे अने मोक्षमार्ग ए ते ज स्वभावना
श्रद्धान, ज्ञाननो अनुभव छे. पूर्ण स्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने शांति द्वारा अनुभव
करवो ते मोक्षमार्ग छे.
अनुभव रत्नचिंतामणि, अनुभव है रसकूप;
अनुभव मारग मोक्षनो, अनुभव मोक्षस्वरूप.
वस्तु त्रिकाळ मुक्तस्वरूप ज छे तेने बंध केवो अने आवरण केवा? एवा मुक्त
स्वभावनुं शरण लेतां जे अनुभव थाय ते मोक्षमार्ग छे.
पोतानो आत्मा ज साध्य छे अने पोतानो आत्मा ज साधक छे. उपादान कारण
कार्यरूप थई जाय छे एटले शुद्ध उपादान स्वभाव पोते ज परिणमीने पूर्णानंदनी
प्राप्तिरूपी कार्यने पामे छे. वज्रवृषभनाराच संहनन अने मनुष्यपणुं कांई केवळज्ञानना
कार्यरूपे परिणमतुं

Page 236 of 238
PDF/HTML Page 247 of 249
single page version

background image
२३६] [हुं
नथी. आत्मा पोते ज अंतरमां एकाकार थई परिणमतो...परिणमतो पूर्ण कार्यरूपे
परिणमी जाय छे.
पंचास्तिकायमां सुवर्णनुं द्रष्टांत आप्युं छे के सुवर्णने शुद्ध थवामां अग्नि तो
निमित्त छे पण सुवर्ण पोते ज शुद्ध थतुं थतुं सोळवलुं सुवर्ण थई जाय छे. तेम
आत्माना मोक्ष माटे आत्मानी श्रद्धा, ज्ञान अने अनुभव ज मोक्षमार्ग छे. उपादान
पोते ज कार्यरूपे परिणमी जाय छे. साथे निमित्त-व्यवहार होय छे तेनी ना नथी पण
तेनुं लक्ष छोडे-आश्रय छोडे, त्यारे ज मोक्षमार्गनी शरूआत छे.
आत्मानुं दर्शन अथवा आत्मानो अनुभव ए ज मोक्षनी सीधी सडक छे. जेम
सीमंधर भगवान क्यां बिराजे छे?-आ (-पूर्व दिशामां) सीधा भगवान बिराजे छे,
तेम सिद्धपणानी पर्यायनी सीधी सडक आत्मानी श्रद्धा-ज्ञान अने शांतिपूर्वक अनुभव
करवो ते छे. मोक्षमहेलना पूर्णकार्य सुधी कारण चाल्युं जाय छे.
जेम अहींथी सीधी सडक पालीताणा शत्रुंजयनी तळेटी सुधी जाय छे तेम
आत्माना श्रद्धा-ज्ञान अने अनुभवरूप सीधी सडक सिद्धदशाना मोक्षमहेल सुधी जाय
छे. आ बधां द्रष्टांतो सिद्धांतने सिद्ध करवा माटे देवाय छे.
राग अने निमित्तनुं अनुसरण छोडीने भगवान आत्माने अनुसरती श्रद्धा-
ज्ञान-अनुभवनी सीधी सडक सिद्धदशाना महेल सुधी पहोंचे छे. मोक्षमहेलमां जवानी
आ सिवाय बीजी कोई सडक ज नथी गली पण नथी.
साक्षात् परमात्मानी भक्ति पण जीवने मोक्षमहेलमां पहोंचाडती नथी.
श्रोताः- तो पछी भगवाननी भक्ति करे कोण?
पूज्य गुरुदेवः- ज्यां सुधी वीतराग थाय नहि त्यां सुधी पूर्णानंदना आश्रयनी
परिणति होवा छतां एवो शुभभाव आव्या वगर रहेतो नथी. अशुभथी बचवा
शुभभाव आव्या वगर रहेतो नथी एम कहेवाय पण खरेखर तो ते काळे ते शुभभाव
आव्या वगर रहेतो नथी-एवी ज वस्तुस्थिति छे.
द्रव्य अनंत गुणसागरनो पिंड छे अने ते गुणोनुं परिणमन ते पर्याय छे.
द्रव्यद्रष्टिथी जुओ तो परमपारिणामिक त्रिकाळ ध्रुव छे, कूटस्थ छे अने पर्यायद्रष्टिथी
जुओ तो उत्पाद-व्यय ते ध्रुवनुं परिणमन छे. द्रव्यद्रष्टिथी द्रव्य परिणमतुं नथी. तेथी ज
तेने सद्रश कह्युं छे एटले जेवुं छे तेवुं ज त्रिकाळ रहे छे. परिणमे छे ते पर्याय छे. द्रव्य
तो अपरिणामी छे, पर्याय तेनुं लक्ष करे छे. अनित्य पर्याय वडे ध्रुवनुं लक्ष थाय छे.
खरेखर तो निश्चयनुं स्वरूप ज ध्रुव छे. उत्पाद्-व्यय छे ते बधो व्यवहारनो
विषय छे अने बीजी रीते कहीए तो पारिणामिक छे तेनी आ पर्याय छे पण ते
व्यवहारनयनी अपेक्षाए छे. पारिणामिक स्वभाव छे ते तो त्रिकाळ एकरूप छे, तेमां
कांई ओछुं नथी, विशेष नथी, भेद नथी अने परिणमन पण नथी पण तेनुं लक्ष
पर्यायथी थाय छे. लक्ष करनार पर्याय छे अने लक्ष द्रव्यनुं छे. आम सद्रश वस्तु ते
निश्चयनयनो विषय छे. विसद्रश

Page 237 of 238
PDF/HTML Page 248 of 249
single page version

background image
परमात्मा] [२३७
एवा उत्पाद-व्यय ते व्यवहारनयनो विषय छे अने ते बन्ने साथे होय ते प्रमाणनो
विषय छे.
बीजना चंद्रमानी माफक चोथा गुणस्थाने अंशे अनुभव होय छे ते वधतो
वधतो पूनमना चंद्रनी माफक पूर्ण अनुभवने प्राप्त थाय छे. आवो मोक्षमार्ग साधकने
वर्तमानमां आनंददायक छे अने भविष्यमां पण अनंत सुखनुं कारण छे. सम्यग्दर्शन-
ज्ञान-चारित्र त्रणेय आनंदमूर्ति छे. ते वर्तमान आनंददायक छे अने भविष्यमां अनंत
आनंददायक छे.
हवे अंतिम १०८ मां श्लोकमां ग्रंथकर्ता पोतानी भावना वर्णवे छे.
संसारह भय भीयएण जोगिचन्द–मुणिएण ।
अप्पा–संबोहण कया दोहा इक्क–मणेण ।। १०८।।
संसारे भयभीत जे, योगीन्दु मुनिराज;
एकचित्त दोहा रचे, निज संबोधन काज. १०८.
शरूआतना श्लोकमां कह्युं हतुं के भवभीरू जीवोना संबोधन माटे हुं आ काव्य
रचुं छुं अने अहीं कह्युं छे के मारा आत्माना संबोधन माटे में आ रचना करी छे के हे
आत्मा! तुं परमानंदमूर्ति छो तेमां स्थिर था...तेमां स्थिर था...तेमां स्थिर था. द्रष्टि
अने ज्ञान तो थया छे पण हवे तेमां पूर्णपणे स्थिर था. एवा संबोधन माटे में आ
शास्त्र रच्युं छे एम आचार्यदेवे लीधुं छे.
जेने चारगतिरूप संसारनो भय लाग्यो छे तेने माटे आ वात छे भाई!
दुःखनो डर लाग्यो छे तेने माटे न लख्युं पण संसार शब्दे चारेय गतिनो जेने थाक
लाग्यो होय तेने माटे आ वात छे. एकला दुःखथी कंटाळे छे तेने तो द्वेष छे, तेने
देवगतिना सुखनी इच्छा छे, तेने माटे आ वात नथी.
भगवान आत्माना आनंदनी बहार नीकळतां जे शुभाशुभभाव थाय तेनुं फळ
संसार छे ते बधो संसार दुःखरूप छे. सर्वार्थसिद्धिना भवनो भाव पण दुःखरूप छे.
योगीन्द्रदेवे पोताना आत्माना संबोधन माटे आ दोहानी रचना करी छे एम
निमित्तथी कथन छे. दोहाना रजकणना स्कंधनी क्रिया तो स्वतंत्र तेनाथी थई छे, तेना
कर्ता मुनिराज नथी. एम मुनिराज पोते ज पोकारीने कहे छे, पण ते दोहा रचाया
त्यारे मारो विकल्प निमित्त हतो एम अहीं कहे छे खरेखर तो ए विकल्पमां पण हुं
नथी; मने तो तेनुं मात्र ज्ञान थयुं छे. स्व-परनी वार्ता करवानी ताकात शब्दमां छे,
मारा भगवान आत्माना भाव तो तेने अडता पण नथी.
त्रणकाळ त्रणलोकमां भगवान आत्मानो स्वभाव एकरूप छे. विकार करवानो
पण स्वभावमां कोई गुण नथी. रागनो अने परनो आत्मा अकर्ता अने अभोक्ता छे.
एवो ज तेनामां अकर्तृत्व अने अभोकतृत्व नामनो गुण छे. जो रागने करवा-
भोगववानो आत्मामां गुण होय तो तो त्रणकाळमां क्यारेय आत्मानी मुक्ति न थाय.
सम्यग्दर्शन पण न थाय.

Page 238 of 238
PDF/HTML Page 249 of 249
single page version

background image
२३८] [हुं
योगीन्दु मुनिराज कहे छे के मने भवभ्रमणनो भय छे. जुओ! पहेलांनां संतो
पण भवभीरू हता. त्रणज्ञानना धणी तीर्थंकर जेवा पण संसारने पूंठ दईने भाग्या छे,
जेम पाछळ वाघ आवतो होय ने माणस केवो भागे? तेम संतो भवभ्रमणना भावथी
भाग्या छे.
संयोगो अनुकूळ होय तो मने मजा, प्रतिकूळता होय तो मने दुःख, शुभभावमां
लाभ छे, एवा जे भाव छे ते मिथ्यात्वनुं गांडपण छे. तेमां जीव पोताना अतीन्द्रिय
सुखने ओळखी शक्तो नथी अने इन्द्रियसुखनो ज लोलुपी रहे छे. तेथी इन्द्रिय
विषयोनी अनुकूळ सामग्रीमांथी प्रेम छूटतो नथी अने तेनी प्रतिकूळ सामग्रीमांथी द्वेष
छूटतो नथी. आम मिथ्याद्रष्टि ज्ञेयना बे भाग पाडीने राग-द्वेष करे छे, जाणनार
रहेतो नथी तेथी दुःखी थाय छे.
बहारनी अनुकूळतामां उल्लसित वीर्य छे ते आत्मानो रोग छे. ते रोग
टाळवानो उपाय ते आत्मानुं शरण छे. आचार्य कहे छे मने संसारनो भय छे, मने
राग-द्वेष विकारनो भय छे. हुं तेमां पडवा मांगतो नथी. हुं तो राग-द्वेष रहित
स्वभावमां रहेवा मांगुं छुं.
आत्मिक आनंदनो ज भोगवटो करवा जेवो छे. निराकुळ अतीन्द्रिय सुख ज
भोगववा लायक छे एवी शुद्ध आत्मानी भावना करीने आचार्ये पोताना आत्मानुं
हित कर्युं छे अने शब्दोमां भावोनी स्थापना करीने जे दोहानी रचना करी छे ते
पाठकोना घणा उपकारनुं निमित्त छे.
आ ग्रंथनी वात पूरी थई. हवे समयसारनो त्रीजो कळश आप्यो छे तेमां
अमृतचंद्र आचार्य कहे छे के पर्यायमां निमित्तनुं लक्ष होवाथी मारी परिणति अनादिथी
कल्माषित मेली छे ते आ टीका करतां शुद्ध थई जाओ एवी मारी भावना छे. स्वरूप
तरफना वलणथी मारी परिणति वीतरागी थई जाय, परम शांतरसथी व्याप्त थई जाय,
समभावमां तन्मय थई जाय अने संसारमार्गथी छूटी मोक्षमार्गीर् थई जाय एवी
भावना छे. टीकाना काळमां मारो आत्मा आवी भावना राखे छे.
मंगलमय अरहंतको, मंगल सिद्ध महान,
आचारज, पाठक, यति, नमूं नमूं सुखदान.
परम भाव परकाशका कारण आत्मविचार,
जिंह निमित्तसे होय सो वंदनिक वारंवार.
पांचेय परमेष्ठी मंगलस्वरूप छे. तेमने हुं नमस्कार करुं छुं. आत्मानो अनुभव
ते परमभावनो प्रकाश करवानुं कारण छे, तेमां जे निमित्त छे तेमने हुं वारंवार वंदुं
छुं-एम कहीने ग्रंथ पूरो कर्यो छे. [समाप्त]
श्री योगसार रहस्य प्रकाशनहार, अध्यात्म योगी, अतीन्द्रिय ज्ञान-आनंद-
भोगी श्री सद्गुरुदेवनो जय हो...जय हो.
समाप्त