ॐ
श्रीमद्देवनन्द्यपरनामपूज्यपादस्वामिविरचितः
इष्टोपदेशः
(पंडितश्रीआशाधरविनिर्मितसंस्कृतटीकासहितश्च)
टीकाकारस्य मंगलाचरणम् ।
परमात्मानमानम्य मुमुक्षुः स्वात्मसंविदे ।
इष्टोपदेशमाचष्टे स्वशक्त्याशाधरः स्फु टम् ।।
तत्रादौ यो यद्गुणार्थी स तद्गुणोपेतं पुरुषविशेषं नमस्करोतीति परमात्मगुणार्थी ग्रन्थकर्त्ता
परमात्मानं नमस्करोति ।
जो जिस गुणको चाहनेवाला हुआ करता है, वह उस उस गुण संपन्न पुरुष
विशेषको नमस्कार किया करता है । यह एक सामान्य सिद्धान्त है । परमात्माके गुणोंको
चाहनेवाले ग्रन्थकार पूज्यपादस्वामी हैं, अतः सर्वप्रथम वे परमात्माको नमस्कार करते हैं ।
अर्थ — जिसको सम्पूर्ण कर्मोंके अभाव होने पर स्वयं ही स्वभावकी प्राप्ति हो गई
है, उस सम्यक्ज्ञानरूप परमात्माको नमस्कार हो ।
श्रीमद् देवनन्दी – अपरनाम – पूज्यपादस्वामी विरचित
£ष्टोपदेश
(श्री पंडित आशाधरकृत संस्कृतटीका सहित)
गुजराती अनुवाद
सं. टीकाकारनुं मंगलाचरण
अर्थ : – निज आत्मसंवेदन माटे परमात्माने नमीने पोतानी शक्ति अनुसार मुमुक्षु
पं. आशाधर (टीका द्वारा) ‘इष्टोपदेश’ स्पष्ट समजावे छे.
टीका : – तेनी (ग्रन्थनी) आदिमां, जे जे गुणोनो अर्थी छे ते ते गुणोयुक्त
पुरुषविशेषने नमस्कार करे छे. तेथी परमात्माना गुणोना अर्थी ग्रन्थकर्ता (श्री
पूज्यपादस्वामी) परमात्माने नमस्कार करे छे.