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iShTopadesh
[ bhagavAnashrIkundakund-
मलविद्घमणेर्व्यक्तिर्यथा नैकप्रकारतः ।
कर्मविद्धात्मविज्ञप्तिस्तथा नैकप्रकारतः ।।
नन्वमूर्तस्यात्मन कथं मूर्तेन कर्मणाभिभवो युक्तः ? इत्यत्राह – मत्त इत्यादि यथा नैव
लभते । कोऽसौ ? पुमान् व्यवहारी पुरुषः । कं ? पदार्थानां घटपटादीनां स्वभावम् किंविशिष्टः
सन् ? मत्तः जनितमदः । कैः ? मदनकोद्रवैः ।।
‘‘मल सहित मणिका प्रकाश (तेज) जैसे एक प्रकारसे न होकर अनेक प्रकारसे
होता है, वैसे ही कर्मसम्बद्ध आत्माका प्रतिभास भी एक रूपसे न होकर अनेक रूपसे
होता है ।’’
यहाँ पर किसीका प्रश्न है कि —
अमूर्त्त आत्माका मूर्तिमान् कर्मोंके द्वारा अभिभव (पैदा) कैसे हो सकता है ?
उत्तरस्वरूप आचार्य कहते हैं किः —
‘‘नशेको पैदा करनेवाले कोद्रव-कोदों धान्यको खाकर जिसे नशा पैदा हो गया
है, ऐसा पुरुष घट-पट आदि पदार्थोंके स्वभावको नहीं जान सकता, उसी प्रकार कर्मबद्ध
आत्मा पदार्थोंके स्वभावको नहीं जान पाता है । अर्थात् आत्मा व उसका ज्ञान गुण यद्यपि
अमूर्त्त है, फि र भी मूर्तिमान् कोद्रवादि धान्योंसे मिलकर वह बिगड़ जाता है । उसी प्रकार
अमूर्त्त आत्मा मूर्त्तिमान् कर्मोंके द्वारा अभिभूत हो जाता है और उसके गुण भी दबे जा
सकते हैं ।।७।।
jevI rIte maLavALA maNino prakAsh ek prakArano nahi hotAn (anek prakAre hoy
chhe,) tevI rIte karmasambaddha AtmAnI vignapti ek prakAre nahi hotAn anek rUpe hoy chhe.
(karma – maLathI AvRutta gnAn khanDakhanDarUp hoI anekarUp hoy chhe).
shiShye prashna karyo — ‘amUrta AtmAno, mUrta karma dvArA abhibhav (parAbhav) thavo
kevI rIte yogya chhe?’
tenA uttarasvarUp AchArya kahe chhe — ‘मत्त इत्यादि०’
jem jANato ja nathI. koN te? puruSh eTale vyavahArI puruSh. kone (jANato
nathI)? ghaT – paTAdi padArthonA svabhAvane. kevo thayelo (te puruSh)? unmatta (pAgal)
thayelo – ghenamAn Avelo. shA vaDe? mad utpanna karanAr kodravothI (kodravonA nimittathI).
bhAvArtha : — jem mAdak kodrav (kodarA)nA nimitte mANas potAnI yogyatAthI