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iShTopadesh
[ bhagavAnashrIkundakund-
अथ प्रतिपाद्यः पर्यनुयुङ्क्ते — ‘तस्मिन्नपि यदि सुखी स्यात् को दोष ? इति’ भगवन् !
संसारेपि न केवलं मोक्ष इत्यपि शब्दार्थः । चेञ्जीवः सुखयुक्तो भवेत् तर्हि को दोषो न कश्चित्
दोषो दुष्टत्वं संसारस्य सर्वेषां सुखस्यैव आप्तुमिष्टत्वात् येन संसारच्छेदाय सन्तो यतेरन्निति ।
अत्राह, वत्स !
विपद्भवपदावर्ते पदिकेवातिबाह्यते ।
यावत्तावद्भवन्त्यन्याः प्रचुरा विपदः पुरः ।।१२।।
उत्थानिका — यहाँ पर शिष्य पूछता है, कि स्वामिन् ! माना कि मोक्षमें जीव सुखी
रहता है । किन्तु संसारमें भी यदि जीव सुखी रहे तो क्या हानि है ? – कारण कि संसारके
सभी प्राणी सुखको ही प्राप्त करना चाहते हैं । जब जीव संसारमें ही सुखी हो जाय तो
फि र संसारमें ऐसी क्या खराबी है ? जिससे कि संत पुरुष उसके नाश करनेके लिये प्रयत्न
किया करते हैं ? इस विषयमें आचार्य कहते हैं — हे वत्स –
जबतक एक विपद टले, अन्य विपद बहु आय ।
पदिका जिमि घटियंत्र में, बार बार भरमाय ।।१२।।
अर्थ — जब तक संसाररूपी पैरसे चलाये जानेवाले घटीयंत्रमें एक पटली सरीखी
have shiShya pUchhe chhe – ‘bhagavan! jo temAn paN (sansAramAn paN) jIv sukhI raheto
hoy to sho doSh? kevaL mokShamAn ja sukhI rahe em kem? — evo paN shabdArtha chhe. jo
jIv sansAramAn paN sukhI thAy to sho doSh? koI doSh nahi, kAraN ke sansAranA sarva
jIvone sukhanI ja prApti iShTa chhe, to pachhI sant puruSho sansAranA nAsh mATe kem prayatna
kare chhe?
[arthAt jo sansAramAn ja sukhanI prApti thatI hoy, to sansAramAn evo sho doSh
chhe, ke tethI sant puruSho tenA nAsh mATe prayatna kare chhe?]
A viShayamAn AchArya kahe chhe – vatsa!
ek vipadane TALatAn, anya vipad bahu Ay,
padikA jyam ghaTiyantramAn, ek jAy bahu Ay. 12.
anvayArtha : — [भवपदावर्ते ] sansArarUpI (pagathI chalAvavAmAn AvatA) ghaTIyantramAn
[पदिका इव ] ek pATalI samAn [विपत् ] ek vipatti [यावत् अतिबाह्यते तावत् ] dUr karAy