kahAn jainashAstramALA ]
iShTopadesh
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टीका — यावदतिबाह्यते अतिक्रम्यते; प्रेर्यते । कासौ ? विपत् सहजशारीरमान-
सागन्तुकानामापदां मध्ये या काप्येका विवक्षिता आपत् । जीवेनेति शेषः । क्व ? भवपदावर्ते
भवः संसारः पदावर्त इव — पादचाल्यघटीयन्त्रमिव — भूयो भूयः परिवर्त्तमानत्वात् । केव,
पदिकेव — पादाक्रान्तदण्डिका यथा तावद्भवति । काः ? अन्या अपूर्वाः प्रचुराः — बह्वो विपदः
आपदः पुरो अग्रे जीवस्य पदिका इव, काछिकस्येति सामर्थ्यं योज्यं । अतो जानीहि दु
खैकनिबन्धन विपत्तिनिरन्तरत्वात् संसारस्यावश्यविनाश्यत्त्वम् ।।
एक विपत्ति भुगतकर तय की जाती है, उसी समय दूसरी-दूसरी बहुतसी विपत्तियाँ सामने
आ उपस्थित हो जाती हैं ।
विशदार्थ — पैरसे चलाये जानेवाले घटीयंत्रको पदावर्त कहते हैं, क्योंकि उसमें
बार बार परिवर्तन होता रहता है । सो जैसे उसमें पैरसे दबाई गई लकड़ी या पटलीके
व्यतीत हो जानेके बाद दूसरी पटलियाँ आ उपस्थित होती हैं, उसी तरह संसाररूपी
पदावर्तमें एक विपत्तिके बाद दूसरी बहुतसी विपत्तियाँ जीवके सामने आ खड़ी होती हैं ।
इसलिये समझो कि एकमात्र दुःखोंकी कारणीभूत विपत्तियोंका कभी भी अन्तर न
पड़नेके कारण यह संसार अवश्य ही विनाश करने योग्य है । अर्थात् इसका अवश्य नाश
करना चाहिए ।।१२।।
te pahelAn to [अन्याः ] bIjI [प्रचुराः ] ghaNI [विपदः ] vipattio [पुरः भवन्ति ] sAme
upasthit thAy chhe.
TIkA : — dUr karAy chhe – atikramAy chhe – prerAy chhe te pahelAn, koN te? vipatti
(dukh) – arthAt sahaj shArIrik yA mAnasik AvI paDatI ApadAomAn koI ek vivakShit
(khAs) ApadA. [‘jIv dvArA’ e shabda adhyAhAr chhe.] kyAn? bhav padAvartamAn – bhav eTale
sansAr ane padAvarta eTale pagathI chalAvavAmAn Avatun ghaTIyantra, kAraN ke temAn vAramvAr
parivartan thatun rahe chhe, — ghaTIyantra jevA sansAramAn. konI mAphak? padAkrAnta (pag mUkI
chalAvavAmAn AvatI) pATalInI jem (dUr karAy te pahelAn arthAt ek pATalI vyatIt thAy
te pahelAn bIjI pATalI) upasthit thAy chhe. koN? (upasthit thAy chhe.) anya eTale apUrva
ane prachur eTale bahu vipattio — ApadAo, jIvanI sAme, jem nadImAn kAchhikanI*
sAme pATalIo (upasthit thAy chhe tem.) — em sAmarthyathI samajavun.
* kAchhik – nadI uparanun prANI.