Ishtopdesh-Gujarati (English transliteration).

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kahAn jainashAstramALA ]
iShTopadesh
[ 77
आत्मदेहान्तरज्ञानजनिताह्लादनिर्वृतः
तपसा दुष्कृतं घोरं भुञ्जानोऽपि न खिद्यते ।।३४।।
एतच्च व्यवहारनयादुच्यते कुत इत्याशङ्कायां पुनराचार्य एवाहसा खलु कर्मणो भवति
तस्य सम्बन्धस्तदा कथमिति वत्स ! आकर्णय खलु यस्मात्सा एकदेशेन विश्लेषलक्षणा निर्जरा
कर्मणः चित्सामान्यानुविधायिपुद्गलपरिणामरूपस्य द्रव्यकर्मणः सम्बन्धिनी संभवति द्रव्ययोरेव
संयोगपूर्वविभागसंभवात्
तस्य च द्रव्यकर्मणस्तदा योगिनः स्वरूपमात्रावस्थानकाले सम्बन्धः
प्रत्यासत्तिरात्मना सह कथं ? केन संयोगादिप्रकारेण सम्भवति ? सूक्ष्मेक्षिकया समीक्षस्व, न
गया है और भी पूज्यपादस्वामीने समाधिशतकमें कहा है‘‘आत्मदेहान्तरज्ञान’’
‘‘आत्मा व शरीरके विवेक (भेद) ज्ञानसे पैदा हुए आनन्दसे परिपूर्ण (युक्त) योगी,
तपस्याके द्वारा भयंकर उपसर्गो व घोर परीषहोंको भोगते हुए भी खेद-खिन्न नहीं होते
हैं
यह सब व्यवहारनयसे कहा जाता है कि बन्धवाले कर्मोंकी निर्जरा होती है,
परमार्थसे नहीं कदाचित् तुम कहो कि ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं कि वत्स ! सुनो,
क्योंकि एकदेशसे सम्बन्ध छूट जाना, इसीको निर्जरा कहते हैं वह निर्जरा कर्मकी
(चित्सामान्यके साथ अन्वयव्यतिरेक रखनेवाले पुद्गलोंके परिणामरूप द्रव्यकर्मकी) हो सकती
है
क्योंकि संयोगपूर्वक विभाग दो द्रव्योंमें ही बन सकता है अब जरा बारीक दृष्टिसे
‘AtmA ane sharIranA bhedagnAnathI utpanna thayelA AnandathI paripUrNa (yukta) yogI,
tapasyA dvArA bhayankar upasargo tathA ghor parIShahone bhogavato hovA chhatAn khedakhinna thato
nathI.’
A vyavahAranayathI kahevAmAn Avyun chhe. ‘shAthI’? evI AshankA thatAn, pharIthI
AchArya ja kahe chhete (nirjarA) kharekhar karmanI thAy chhe.
teno (karmano) sambandh tyAre kevI rIte chhe?
vatsa! sAmbhaL. kharekhar te (nirjarA) ekadesh (karmanA) vishleShalakShaNavALI
(chhUTavArUp) karmanI nirjarA, chitsAmAnyane anuvidhAyI (anusaratA) pudgalapariNAmarUp
dravyakarma sambandhI hoy chhe, kAraN ke be dravyonA sanyogapUrvak (temano) vibhAg (chhUTA paDavun)
sambhave chhe.
jyAre yogI puruSh svarUpamAtramAn avasthAn karI rahyo chhe, te samaye dravyakarmano