Ishtopdesh-Gujarati (simplified iso15919 transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 20 of 146
PDF/HTML Page 34 of 160

 

background image
20 ]
iṣhṭopadesh
[ bhagavānashrīkundakund-
अपि च‘रम्यं हर्म्यं चन्दनं चन्द्रपादा, वेणुर्वीणा यौवनस्था युवत्यः
नैते रम्या क्षुत्पिपासार्दितानां, सर्वारंभास्तंदुलाः प्रस्थमूलाः ।।
तथा‘आतपे धृतिमता सह वध्वा यामिनीविरहिणा विहगेन
सेहिरे न किरणाहिमरश्मेर्दुःखिते मनसि सर्वमसह्यम् ।।’’
‘‘मुञ्चाङ्गं........’’
‘‘रम्यं हर्म्यं’’
रमणीक महल, चन्दन, चन्द्रमाकी किरणें (चाँदनी), वेणु, वीणा तथा यौवनवती
युवतियाँ (स्त्रियाँ) आदि योग्य पदार्थ भूख-प्याससे सताये हुए व्यक्तियोंको अच्छे नहीं
लगते
ठीक भी है, अरे ! सारे ठाटबाट सेरभर चाँवलोंके रहने पर ही हो सकते हैं
अर्थात् पेटभर खानेके लिए यदि अन्न मौजूद है, तब तो सभी कुछ अच्छा ही अच्छा लगता
है
अन्यथा (यदि भरपेट खानेको न हुआ तो) सुन्दर एवं मनोहर गिने जानेवाले पदार्थ
भी बूरे लगते हैं इसी तरह और भी कहा है :
‘‘एक पक्षी (चिरबा) जो कि अपनी प्यारी चिरैयाके साथ रह रहा था, उसे धूपमें
रहते हुए भी संतोष और सुख मालूम होता था रातके समय जब वह अपनी चिरैयासे
बिछुड़ गया, तब शीतल किरणवाले चन्द्रमाकी किरणोंको भी सहन (बरदाश्त) न कर
सका
उसे चिरैयाके वियोगमें चन्द्रमाकी ठंडी किरणें सन्ताप व दुःख देनेवाली ही प्रतीत
होने लगीं ठीक ही है, मनके दुःखी होने पर सभी कुछ असह्य हो जाता है, कुछ भी
भला या अच्छा मालूम नहीं होता ’’
vaḷī. ‘‘रम्यं हर्म्ये.....’’
sundar mahel, chandan, chāndanī (chandranā kiraṇo), veṇu, vīṇā tathā yauvanavatī yuvatio
vagere, bhūkh tarasathī pīḍātī vyaktione ramya (majānān) lāgatān nathī, kāraṇ ke (jīvonā)
sarva ārambhomān tandulaprastha e mūḷ vāt chhe. (arthāt gharamān bhojan māṭe tandul hoy
to ā badhā padārtho sundar lāge chhe, nahi to nahi.)
vaḷī, ‘‘आतपे धृतिमता.......’’
ek pakṣhī potānī priyā sāthe taḍakāmān rahevā chhatān sukh mānatun hatun, parantu rātre
jyāre te potānī priyāthī vikhūṭun paḍī gayun, tyāre tenā viyogamān chandranān kiraṇo paṇ tene
santāp detān lāgyān; kāraṇ ke man duḥkhī thatān badhun asahya thaī paḍe chhe; sārun lāgatun nathī;
ityādi.