Ishtopdesh-Gujarati (simplified iso15919 transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 52 of 146
PDF/HTML Page 66 of 160

 

background image
52 ]
iṣhṭopadesh
[ bhagavānashrīkundakund-
कथं भूतान्, तापकान् देहेन्द्रियमनः क्लेशहेतून् क्व ? आरम्भे उत्पत्त्युपक्रमे
अन्नादिभोग्यद्रव्यसंपादनस्य कृष्यादिक्लेशबहुलतायाः सर्वजनसुप्रसिद्धत्वात् तर्हि भुज्यमानाः
कामाः सुखहेतवः सन्तीतिसेव्यास्ते इत्याह, प्राप्तावित्यादि प्राप्तौ इन्द्रियेण सम्बन्धे सति अतृप्तेः
सुतृष्णायाः प्रतिपादकान् दायकान्
उक्तं च [ज्ञानार्णवे २०३० ]
‘‘अपिं संकल्पिताः कामाः संभवन्ति यथा यथा
तथा तथा मनुष्याणां तृष्णा विश्वं विसर्पति ।।’’
क्लेश हुआ करते हैं कदाचित् यह कहो कि भोगे जा रहे भोगोपभोग तो सुखके कारण
होते हैं ! इसके लिये यह कहना है कि इन्द्रियोंके द्वारा सम्बन्ध होने पर वे अतृप्ति यानी
बढ़ी हुई तृष्णाके कारण होते हैं, जैसा कि कहा गया है :
‘‘अपि संकल्पिता; कामाः’’
‘‘ज्यों ज्यों संकल्पित किए हुए भोगोपभोग, प्राप्त होते जाते हैं, त्यों त्यों मनुष्योंकी
तृष्णा बढ़ती हुई सारे लोकमें फै लती जाती है मनुष्य चाहता है, कि अमुक मिले उसके
मिल जाने पर आगे बढ़ता है, कि अमुक और मिल जाय उसके भी मिल जाने पर
मनुष्यकी तृष्णा विश्वके समस्त ही पदाथोंको चाहने लग जाती है कि वे सब ही मुझे मिल
जाएँ
परंतु यदि यथेष्ट भोगोपभोगोंको भोगकर तृप्त हो जाय तब तो तृष्णारूपी सन्ताप
ठण्डा पड़ जाएगा ! इसलिए वे सेवन करने योग्य हैं आचार्य कहते हैं कि वे भोग लेने
kevā (bhogopabhogone)? santāp karanār arthāt deh, indriyo ane manane kleshanā
kāraṇarūp. kyāre? ārambhamānutpattinā kramamān, kāraṇ ke annādi bhogya dravya (vastu)
sampādan karavāmān khetī ādi sambandhī bahu klesh rahe chhe e sarva janomān suprasiddha chhe.
tyāre kahe chhe ke bhogavavāmān āvatā bhogo to sukhanun kāraṇ chhe, tethī te sevavā yogya
chhe. to (javābamān) kahe chhe ke
प्राप्तावित्यादिprāpti samaye eṭale indriyo sāthe sambandh thatān
te (bhogo) atr̥upti karanār arthāt bahu tr̥uṣhṇā utpanna karanār chhe. kahyun chhe ke‘अपि
संकल्पिताः’
‘jem jem saṅkalpit (kalpelā) bhogopabhog prāpta thāy chhe, tem tem manuṣhyonī
tr̥uṣhṇā (vadhī jaī) badhā vishvamān phelāī jāy chhe.’
(shiṣhya) kahe chhetyāre ichchhā pramāṇe te (bhogopabhogane) bhogavīne tr̥upta thatān,
tr̥uṣhṇārūpī santāp shamī jashe. tethī te sevavā yogya chhe.