Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२१४ प्र. आदेय नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी कांतिसहित शरीर ऊपजे,
तेने आदेय नामकर्म कहे छे.
२१५ प्र. अनादेय नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी कांतिसहित शरीर न होय,
तेने अनादेय नामकर्म कहे छे.
२१६ प्र. यशःकीर्ति नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी संसारमां जीवनी प्रशंसा
थाय, तेने यशःकीर्ति नामकर्म कहे छे.
२१७ प्र. अपयशःकीर्ति नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी संसारमां जीवनी प्रशंसा न
थाय, तेने अपयशःकीर्ति नामकर्म कहे छे.
२१८ प्र. तीर्थंकर नामकर्म कोने कहे छे?
उ. अर्हंत पदना कारणभूत कर्मने तीर्थंकर
नामकर्म कहे छे.
२१९ प्र. गोत्रकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी संताननां क्रमना चालता
आवेल जीवना आचरणरूप उच्च-नीच गोत्रमां जन्म थाय,
तेने गोत्रकर्म कहे छे.
२२० प्र. गोत्रकर्मना केटला भेद छे?
उ. बेःउच्चगोत्र अने नीचगोत्र.
२२१ प्र. उच्च गोत्रकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी उच्च कुळमां जन्म थाय.
२२२ प्र. नीच गोत्रकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी नीच कुळमां जन्म थाय.
२२३ प्र. अंतराय कर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्म दानादिक करवामां विघ्न नांखे.
२२४ प्र. अंतराय कर्मना केटला भेद छे?
उ. पांचःदानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय,
उपभोगान्तराय अने वीर्यान्तराय; दरेकनो अर्थ ए के
दरेकमां विघ्न नांखे.
२२५ प्र. पुण्य कर्म कोने कहे छे?
उ. जे जीवने इष्ट वस्तुनी प्राप्ति करावे.
५० ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ५१