Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२०४ प्र. अपर्याप्ति नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी लब्ध्यपर्याप्तक अवस्था थाय,
तेने अपर्याप्ति नामकर्म कहे छे.
२०५ प्र. प्रत्येक नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी एक शरीरनो एक स्वामी
होय, तेने प्रत्येक नामकर्म कहे छे.
२०६ प्र. साधारण नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी एक शरीरना अनेक जीव
मालिक (स्वामी) होय, तेने साधारण नामकर्म कहे छे.
२०७ प्र. स्थिर नामकर्म अने अस्थिर नामकर्म कोने
कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरनी धातु अने उपधातु
पोतपोताना ठेकाणे रहे, तेने स्थिर नामकर्म कहे छे. अने
जे कर्मना उदयथी शरीरनी धातु अने उपधातु पोतपोताने
ठेकाणे न रहे, तेने अस्थिर नामकर्म कहे छे.
२०८ प्र. शुभ नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरना अवयव सुंदर थाय,
तेने शुभ नामकर्म कहे छे.
२०९ प्र. अशुभ नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरना अवयव सुंदर न
थाय, तेने अशुभ नामकर्म कहे छे.
२१० प्र. सुभग नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी बीजा जीवो पोताना उपर
प्रीति करे, तेने सुभग नामकर्म कहे छे.
२११ प्र. दुर्भग नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी बीजा जीवो पोतानी साथे
दुश्मनी (वैर) करे, तेने दुर्भग नामकर्म कहे छे.
२१२ प्र. सुस्वर नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी सुंदर मधुर स्वर होय, तेने
सुस्वर नामकर्म कहे छे.
२१३ प्र. दुःस्वर नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी मधुर स्वर न होय, तेने
दुःस्वर नामकर्म कहे छे.
४८ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ४९