१०० ][ अध्यायः ३
एक वांकवाळी गतिमां बे समय, लांगलिका गतिमां त्रण
समय अने गोमूत्रिका गतिमां चार लागे छे.
४२२ प्र. ए गतिओमां अनाहारक अवस्था केटला
समय सुधी रहे छे?
उ. ॠजुगतिवाळो जीव अनाहारक होतो नथी.
पाणिमुक्तागतिमां एक समय, लांगलिकामां बे समय अने
गोमूत्रिकामां त्रण समय जीव अनाहारक रहे छे.
४२३ प्र. मोक्ष जवावाळा जीवने कई गति थाय छे?
उ. ॠजुगति थाय छे. अने ते जीव अनाहारक ज
थाय छे.
४२४ प्र. जन्म केटला प्रकारना होय छे?
उ. त्रण प्रकारनाः – उपपादजन्म, गर्भजन्म अने
संमूर्च्छनजन्म.
४२५ प्र. उपपादजन्म कोने कहे छे?
उ. जे जीव देवोनी उपपाद शय्या तथा नारकीओना
योनिस्थानमां पहोंचतां ज अंतर्मुहूर्तमां युवावस्थाने प्राप्त
थई जाय, ते जन्मने उपपाद जन्म कहे छे.
४२६ प्र. गर्भजन्म कोने कहे छे?
उ. माता-पिताना रजोवीर्यथी जेनुं शरीर बने, ते
जन्मने गर्भजन्म कहे छे.
४२७ प्र. संमूर्च्छनजन्म कोने कहे छे?
उ. माता-पितानी अपेक्षा विना अहीं तहींना
परमाणुओने ज शरीररूप परिणमावे, तेवा जन्मने
संमूर्च्छनजन्म कहे छे.
४२८ प्र. क्या क्या जीवने क्यो क्यो जन्म थाय छे?
उ. देव, नारकी जीवोने उपपाद जन्म थाय छे.
जरायुज, अंडज अने पोत (जे योनिमांथी नीकळतांनी साथे
ज भागवा, दोडवा लागी जाय छे अने जेना उपर ओर
वगेरे होती नथी ते) जीवोने गर्भजन्म थाय छे. अने
बाकीना जीवोने संमूर्च्छन जन्म ज थाय छे.
४२९ प्र. क्या क्या जीवोने क्या क्या लिंग होय छे?
उ. नारकीजीवो अने संमूर्च्छन जीवोने नपुंसक
लिंग होय छे अने देवोने पुलिंग अने स्त्रीलिंग होय छे
अने बाकीना जीवोने त्रण लिंग होय छे.
श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १०१