Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४३० प्र. जीवसमास कोने कहे छे?
उ. जीवोने रहेवाना ठेकाणाने जीवसमास कहे छे.
४३१ प्र. जीवसमासना केटला भेद छे?
उ. ९८ छेःतिर्यंचना ८५, मनुष्यना ९,
नारकीओना २ अने देवोना २.
४३२ प्र. तिर्यंचना ८५ भेद क्या क्या छे?
उ. संमूर्च्छनना ६९ अने गर्भजना १६.
४३३ प्र. संमूर्च्छनना ६९ भेद क्या क्या छे?
उ. एकेन्द्रियना ४२, विकलत्रयना ९ अने
पंचेन्द्रियना १८.
४३४ प्र. एकेन्द्रियना ४२ भेद क्या क्या छे?
उ. पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, नित्यनिगोद,
इतरनिगोद ए छना बादर अने सूक्ष्मनी अपेक्षाथी १२
तथा सप्रतिष्ठितप्रत्येक अने अप्रतिष्ठितप्रत्येकने उमेरवाथी
१४ थाय छे. ते चौदना पर्याप्तक, निर्वृत्यपर्याप्तक अने
लब्धपर्याप्तक ए त्रणेनी अपेक्षाए ४२ जीवसमास थाय
छे.
४३५ प्र. विकलत्रयना ९ भेद क्या क्या छे?
उ. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने चतुरिन्द्रियना पर्याप्तक,
निर्वृत्यपर्याप्तकनी अने लब्ध्यपर्याप्तकनी अपेक्षाए नव भेद
थाय.
४३६ प्र. संमूर्च्छन पंचेन्द्रियना १८ भेद क्या क्या
छे?
उ. जलचर, स्थलचर, नभचर ए त्रणेना संज्ञी
असंज्ञीनी अपेक्षाए ६ भेद थाय अने ते छना पर्याप्तक,
निर्वृत्यपर्याप्तक, लब्ध्यपर्याप्तकनी अपेक्षाए १८ जीवसमास
थाय छे.
४३७ प्र. गर्भज पंचेन्द्रियना १६ भेद क्या क्या
छे?
उ. कर्मभूमिना १२ अने भोगभूमिना ४.
४३८ प्र. कर्मभूमिना १२ भेद क्या क्या छे?
उ. जलचर, स्थलचर, नभचर ए त्रणेना संज्ञी,
असंज्ञीना भेदथी छ भेद थया अने तेना पर्याप्तनिर्वृत्य
पर्याप्तकनी अपेक्षाए बार भेद थया.
१०२ ][ अध्यायः ३श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १०३