Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४५० प्र. कल्पोपपन्न देवोना केटला भेद छे?
उ. सोळः१ सौधर्म, २ ऐशान, ३ सानत्कुमार,
४ माहेन्द्र, ५ ब्रह्म, ६ ब्रह्मोत्तर, ७ लांतव, ८ कापिष्ट,
९ शुक्र, १० महाशुक्र, ११ सतार, १२ सहस्रार, १३
आनत, १४ प्राणत, १५ आरण अने १६ अच्युत.
४५१ प्र. कल्पातीत देवोना केटला भेद छे?
उ. २३ छेःनव ग्रैवेयक, नव अनुदिश, पांच
पंचोत्तर (विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित अने
सर्वार्थसिद्ध).
४५२ प्र. नारकीओना विशेष भेद केटला छे?
उ. पृथ्वीओनी अपेक्षाए सात भेद छे.
४५३ प्र. सात पृथ्वीओनां नाम क्या क्या छे?
उ. रत्नप्रभा (धर्मा), शर्कराप्रभा (वंशा),
वालुकाप्रभा (मेघा), पंकप्रभा (अंजना), धूमप्रभा
(अरिष्टा), तमःप्रभा (मघवी), महातमःप्रभा (माधवी).
४५४ प्र. सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोने रहेवानुं स्थान
क्यां छे?
उ. सर्वलोक.
४५५ प्र. बादर एकेन्द्रिय जीवो क्यां रहे छे?
उ. बादर एकेन्द्रिय जीव कोईपण आधारनुं निमित्त
प्राप्त करीने निवास करे छे.
४५६ प्र. त्रस जीव क्यां रहे छे?
उ. त्रस जीव त्रसनालीमां ज रहे छे.
४५७ प्र. विकलत्रय जीव क्यां रहे छे?
उ. विकलत्रय जीव कर्म भूमि अने अंतना अर्धद्वीप
तथा अंतना स्वयंभूरमण समुद्रमां ज रहे छे.
४५८ प्र. पंचेन्द्रिय तिर्यंच क्या क्या रहे छे?
उ. तिर्यक्लोकमां रहे छे, परंतु जलचर तिर्यंच
लवण समुद्र, कालोदधि समुद्र अने स्वयंभूरमण समुद्रना
सिवाय अन्य समुद्रोमां नथी.
४५९ प्र. नारकी जीवो क्यां रहे छे?
उ. नारकी जीवो अधोलोकनी सात पृथ्वीओमां
(नरकोमां) रहे छे.
१०६ ][ अध्यायः ३श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १०७