Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४६० प्र. भवनवासी अने व्यंतर देवो क्यां रहे
छे?
उ. पहेली पृथ्वीना खरभाग अने पंकभागमां तथा
तिर्यंक्लोकमां रहे छे.
४६१ प्र. ज्योतिष्क देव क्यां रहे छे?
उ. पृथ्वीथी सातसो नेवुं योजननी ऊंचाईथी नवसो
योजननी ऊंचाई सुधी एटले एकसो दश योजन आकाशमां
एक राजुमात्र तिर्यक् लोकमां ज्योतिष्क देव निवास करे छे.
४६२ प्र. वैमानिक देव क्यां रहे छे?
उ. ऊर्ध्वलोकमां.
४६३ प्र. मनुष्य क्यां रहे छे?
उ. नरलोकमां.
४६४ प्र. लोकना केटला भेद छे?
उ. त्रण छेःऊर्ध्वलोक, मध्यलोक अने अधोलोक.
४६५ प्र. अधोलोक कोने कहे छे?
उ. मेरुपर्वतनी नीचे सात राजु अधोलोक छे.
४६६ प्र. ऊर्ध्वलोक कोने कहे छे?
उ. मेरुना उपर लोकना अंतपर्यंत ऊर्ध्वलोक छे.
४६७ प्र. मध्यलोक कोने कहे छे?
उ. एक लाख चालीश योजन मेरुनी ऊंचाईनी
बराबर मध्यलोक छे.
४६८ प्र. मध्यलोकनुं विशेष स्वरूप शुं छे?
उ. मध्यलोकना अत्यंत मध्यमां एक लाख योजन
लांबो पहोळो गोळ (थाळीनी माफक) जम्बूद्वीप छे.
जंबूद्वीपना मध्यमां एक लाख योजन ऊंचो सुमेरु पर्वत
छे, जेनुं एक हजार जमीननी अंदर मूळ छे, ९९ हजार
योजन पृथ्वीना उपर छे अने चालीश योजननी ऊंची
चूलिका (चोटी) छे. जंबूद्वीपना मध्यमां पूर्व-पश्चिम तरफ
लांबा छ कुलाचल पर्वत पडेला छे, जेनाथी जंबूद्वीपना
सात खंड थई गया छे. ते साते खंडोनां नाम आवी रीते
छे. भरत, हैमवत, हरिवर्ष, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत अने
ऐरावत. विदेहक्षेत्रमां मेरुथी उत्तर दिशामां उत्तरकुरु अने
१.अहीं एक योजन बे हजार कोशनो जाणवो.
१०८ ][ अध्यायः ३श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १०९