रचना छे, लवण समुद्र अने कालोदधि समुद्रमां ९६
अंतरद्वीप छे, जेमां कुभोगभूमिनी रचना छे. त्यां मनुष्य
ज रहे छे, तेमां मनुष्योनी आकृति नाना प्रकारनी कुत्सित
छे.
त्रीजो अध्याय समाप्त
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चोथो अधयाय
४६९ प्र. संसारमां समस्त प्राणी सुखने चाहे छे
अने सुखनो ज उपाय करे छे, परंतु सुखने प्राप्त
केम थया नथी?
उ. संसारी जीव (खरा) असली सुखनुं स्वरूप अने
तेनो उपाय जाणता नथी अने तेनुं साधन पण करता नथी,
तेथी खरा सुखने प्राप्त थता नथी.
४७० प्र. असली सुखनुं स्वरूप शुं छे?
उ. आह्लादस्वरूप जीवना अनुजीवी सुख गुणनी
शुद्धदशाने असली सुख कहे छे. एज जीवनो खास स्वभाव
छे, परंतु संसारी जीवोए भ्रमवश शातावेदनीय कर्मना
निमित्ते ते खरा सुखना वैभाविक परिणतिरूप
शातापरिणामने ज सुख मानी राख्युं छे.
४७१ प्र. संसारी जीवने असली सुख केम मळतुं
नथी?
उ. मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान अने मिथ्याचारित्रना
११२ ][ अध्यायः ३श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ११३ूाी जैन सिांत प्रवेशिका