असली कारणथी असली सुख संसारी जीवने मळतुं नथी.
४७२ प्र. संसारी जीवने असली सुख क्यारे मळे
छे?
उ. संसारी जीवने खरुं सुख मोक्ष थवाथी मळे छे.
४७३ प्र. मोक्षनुं स्वरूप शुं छे?
उ. आत्माथी समस्त भावकर्म तथा द्रव्य कर्मोना
विप्रमोक्षने (अत्यंत वियोगने) मोक्ष कहे छे.
४७४ प्र. ते मोक्ष प्राप्तिनो उपाय क्यो छे?
उ. मोक्षनी प्राप्तिनो उपाय संवर अने निर्जरा छे.
४७५ प्र. संवर कोने कहे छे?
उ. आस्रवना निरोधने संवर कहे छे अर्थात् नवो
विकार अटकवो तथा अनागत (नवीन) कर्मोनो आत्मानी
साथे संबंध न थवाने संवर कहे छे.
४७६ प्र. निर्जरा कोने कहे छे?
उ. आत्माने एकदेशविकारनुं घटवुं तथा पूर्वे
बांधेलां कर्मोथी संबंध छूटवाने निर्जरा कहे छे.
४७७ प्र. संवर अने निर्जरा थवानो उपाय शुं छे?
उ. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ए
त्रणेनी ऐक्यता ज संवर अने निर्जरा थवानो उपाय छे.
४७८ प्र. ए त्रणेनी ऐक्यता पूर्ण एक साथे थाय
छे के अनुक्रमथी थाय छे?
उ. अनुक्रमथी थाय छे.
४७९ प्र. ए त्रणेनी पूर्ण ऐक्यता थवानो क्रम केवी
रीते छे?
उ. जेम जेम गुणस्थान वधे छे तेम ज ए गुणो
पण वधता वधता अंतमां पूर्ण थाय छे.
४८० प्र. गुणस्थान कोने कहे छे?
उ. मोह अने योगना निमित्तथी सम्यग्दर्शन,
सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्ररूप आत्माना गुणोनी
तारतम्यतारूप अवस्थाविशेषने गुणस्थान कहे छे.
४८१ प्र. गुणस्थानना केटला भेद छे?
उ. चौद भेद छेः – १ मिथ्यात्व, २ सासादन, ३
मिश्र, ४ अविरतसम्यग्द्रष्टि, ५ देशविरत, ६ प्रमत्तविरत,
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