Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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लोभना उदयथी व्रत रहित सम्यक्त्वधारी चोथा
गुणस्थानवर्ती थाय छे.
५०१ प्र. आ चोथा गुणस्थानमां केटली प्रकृतिओनो
बंध थाय छे?
उ. त्रीजा गुणस्थानमां ७४ प्रकृतिओनो बंध थाय
छे. जेमां मनुष्यायु, देवायु अने तीर्थंकर प्रकृतिए त्रण
सहित ७७ प्रकृतिओनो बंध आ चोथामां थाय छे.
५०२ प्र. चोथा गुणस्थानमां केटली प्रकृतिओनो
उदय थाय छे?
उ. त्रीजा गुणस्थानमां १०० प्रकृतिओनो उदय
थाय छे, तेमांथी व्युच्छिन्न प्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व बाद
करवाथी ९९ रही, तेमां चार अनुपूर्वी अने एक
सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व ए पांच प्रकृतिओ उमेरवाथी १०४
प्रकृतिओनो उदय थाय छे.
५०३ प्र. चोथा गुणस्थानमां केटली प्रकृतिओनी
सत्ता रहे छे?
उ. सर्वनी; अर्थात् १४८ प्रकृतिओनी; परंतु क्षायिक
सम्यग्द्रष्टिने १४१ प्रकृतिओनी ज सत्ता छे.
५०४ प्र. पांचमा देशविरत गुणस्थाननुं स्वरूप शुं
छे?
उ. प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभना
उदयथी जोके संयमभाव थतो नथी, तोपण
अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान, माया, लोभना उपशमथी
श्रावकव्रतरूप देशचारित्र थाय छे, तेने ज देशविरत नामे
पांचमुं गुणस्थान कहे छे. पांचमुं आदि उपरनां सर्व
गुणस्थानोमां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्दर्शननुं अविनाभावी
सम्यग्ज्ञान अवश्य थाय छे, एना विना पांचमा, छठ्ठा
वगेरे गुणस्थानो थतां नथी.
५०५ प्र. पांचमा गुणस्थानमां केटली प्रकृतिओनो
बंध थाय छे?
उ. चोथा गुणस्थानमां जे ७७ प्रकृतिओनो बंध
कह्यो छे, तेमांथी व्युच्छिन्न १० (अप्रत्याख्यानावरण क्रोध,
मान, माया, लोभ, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी,
मनुष्यायु, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग,
१२८ ][ अध्यायः ४श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १२९