मान, माया, लोभ, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला,
दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, न्यग्रोध संस्थान, स्वाति संस्थान,
कुब्जक संस्थान, वामन संस्थान, वज्रनाराचसंहनन,
नाराचसंहनन, अर्द्धनाराच संहनन, कीलित संहनन,
अप्रशस्तविहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तिर्यग्गति,
तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, तिर्यगायु अने उद्योत) ने बाद करवाथी
बाकी रही ७६; परंतु आ गुणस्थानमां कोई पण
आयुकर्मनो बंध थतो नथी, तेथी ७६मांथी मनुष्यायु अने
देवायु ए बंनेने बाद करवाथी ७४ प्रकृतिओनो बंध थाय
छे. नरकायु तो पहेला गुणस्थानमां अने तिर्यगायुनी बीजा
गुणस्थानमां ज व्युच्छिति थई चूकी छे.
(अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, एकेन्द्रियादि ४
अने स्थावर १)ने बाद करवाथी बाकी रहेली १०२मांथी
नरकगत्यानुपूर्वी वगर (केमके ते बीजा गुणस्थानमां बाद
करेली छे) बाकीनी त्रण अनुपूर्वी घटाडवाथी कोई पण
अनुपूर्वीनो उदय नथी.) बाकी रहेली ९९ प्रकृति अने एक
सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिनो उदय अहीं आवी मळ्यो, ते
कारणथी आ गुणस्थानमां १०० प्रकृतिओनो उदय थाय छे.
क्षयोपशमथी अने अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया,