४९२ प्र. सासादनगुणस्थानमां केटली प्रकृतिओनो
बंध थाय छे?
उ. पहेला गुणस्थानमां जे ११७ प्रकृतिओनो बंध
थाय छे तेमांथी मिथ्यात्वगुणस्थानमां जेनी व्युच्छित्ति छे,
एवी सोळ प्रकृतिओ घटाडवाथी १०१ प्रकृतिओनो बंध
सासादन गुणस्थानमां थाय छे. ते सोळ प्रकृतिनां नाम –
मिथ्यात्व, हुंडकसंस्थान, नपुंसकवेद, नरकगति,
एकेन्द्रियजाति, विकलत्रय जाति त्रण, स्थावर, आताप,
सूक्ष्म, अपर्याप्त, अने साधारण ए सोळ छे.
४९३ प्र. व्युच्छित्ति कोने कहे छे?
उ. जे गुणस्थानमां कर्मप्रकृतिओनो बंध, उदय
अथवा सत्त्व (सत्ता)नी व्युच्छित्ति कही होय, ते गुणस्थान
सुधी ज ते प्रकृतिओनो बंध, उदय अथवा सत्ता थाय छे.
आगळना कोई गुणस्थानमां ते प्रकृतिओनो बंध, उदय
अथवा सत्त्व होतां नथी, तेने व्युच्छित्ति कहे छे.
४९४ प्र. सासादनगुणस्थानमां केटली प्रकृतिओनो
उदय थाय छे?
उ. पहेला गुणस्थानमां जे ११७ प्रकृतिओनो उदय
थाय छे, तेमांथी मिथ्यात्व, आताप, सूक्ष्म, अपर्याप्त अने
साधारण ए पांच मिथ्यात्व गुणस्थाननी व्युच्छिन्न
प्रकृतिओ बाद करवाथी ११२ रही, परंतु
नरकगत्यानुपूर्वीनो आ गुणस्थानमां उदय थतो नथी, तेथी
आ गुणस्थानमां १११ प्रकृतिओनो उदय थाय छे.
४९५ प्र. सासादनगुणस्थानमां सत्त्व (सत्ता) केटली
प्रकृतिओनी रहे छे?
उ. सासादनगुणस्थानमां १४५ प्रकृतिओनी सत्ता
रहे छे. अहीं तीर्थंकर प्रकृति, आहारक शरीर, अने
आहारक अंगोपांग ए त्रण प्रकृतिओनी सत्ता रहेती
नथी.
४९६ प्र. त्रीजुं मिश्रगुणस्थान कोने कहे छे?
उ. सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिना उदयथी जीवने केवळ
सम्यक्त्व परिणाम प्राप्त थतुं नथी. अथवा केवळ
मिथ्यात्वरूप परिणाम पण प्राप्त थतुं नथी. परंतु मळेला
दहीं गोळना स्वादनी माफक एक भिन्न जातिनुं मिश्र
परिणाम थाय छे, तेने मिश्रगुणस्थान कहे छे.
१२४ ][ अध्यायः ४श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १२५