Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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उदय थतो नथी, तेथी १२२ प्रकृतिओमांथी पांच घटाडवाथी
११७ प्रकृतिओनो उदय पहेला मिथ्यात्व गुणस्थानमां
थाय छे.
४८७ प्र. मिथ्यात्व गुणस्थानमां सत्ता(सत्त्व) केटली
प्रकृतिओनी रहे छे?
उ. मिथ्यात्व गुणस्थानमां १४८ प्रकृतिओनी सत्ता
रहे छे.
४८८ प्र. सासादनगुणस्थान कोने कहे छे?
उ. प्रथमोपशम सम्यक्त्वना काळमां ज्यारे
वधारेमां वधारे ६ आवली अने ओछामां ओछो १ समय
बाकी रहे, ते समयमां कोई एक अनंतानुबंधी कषायना
उदयथी जेनुं सम्यक्त्व नाश थई गयुं छे, एवो जीव
सासादनगुणस्थानवाळो थाय छे.
४८९ प्र. प्रथमोपशम सम्यक्त्व कोने कहे छे?
उ. सम्यक्त्वना त्रण भेद छेदर्शनमोहनीयनी त्रण
प्रकृति अने अने अनंतानुबंधीनी ४ प्रकृति एवी रीते सात
प्रकृतिओनो उपशम थवाथी जे उत्पन्न थाय, तेने उपशम
सम्यक्त्व कहे छे अने ए साते प्रकृतिओनो क्षय थवाथी जे
उत्पन्न थाय, तेने क्षायिकसम्यक्त्व कहे छे. अने छ
प्रकृतिओनो अनुदय अने सम्यक्प्रकृति नामना मिथ्यात्वना
उदयथी जे उत्पन्न थाय, तेने क्षायोपशमिक सम्यक्त्व
कहे छे.
उपशम सम्यक्त्वना बे भेद छे.
प्रशमोपशमसम्यक्त्व, अने द्वितीयोपशमसम्यक्त्व, अनादि
मिथ्याद्रष्टिनी पांच अने सादि मिथ्याद्रष्टिनी पांच अने
सादि मिथ्याद्रष्टिनी सात प्रकृतिओना उपशमथी उत्पन्न
थाय, तेने प्रथमोपशमसम्यक्त्व कहे छे.
४९० प्र. द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कोने कहे छे?
उ. सातमा गुणस्थानमां क्षायोपशमिक सम्यग्द्रष्टि
जीव श्रेणी चढवानी सन्मुख अवस्थामां अनंतानुबंधी
चतुष्टयनुं विसंयोजन (अप्रत्याख्यानादिरूप) करीने
दर्शनमोहनीयनी त्रण प्रकृतिओनो उपशम करीने सम्यक्त्व
प्राप्त करे छे, तेने द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहे छे.
४९१ प्र. आवली कोने कहे छे?
उ. असंख्यातसमयनी एक आवली थाय छे.
१२२ ][ अध्यायः ४श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ १२३