सर्व पदार्थ जुदा जुदा छे, परंतु कदाचित् ए बधा मळीने एक थई जाय ए ज ब्रह्म छे,
एम मानीए तोपण तेथी कांई ब्रह्म भिन्न ठरतो नथी.
एक प्रकार आ छे के — अंग तो जुदां – जुदां छे अने जेनां ते अंग छे एवो अंगी
एक छे. जेम नेत्र, हाथ, पग आदि अंग जुदां – जुदां छे पण जेनां ए जुदां – जुदां अंगो
छे ते मनुष्य तो एक छे. ए प्रमाणे सर्व पदार्थो तो अंग छे अने जेने ए जुदां – जुदां
अंग छे तेवो अंगी ब्रह्म छे. आ सर्व लोक विराटस्वरूप ब्रह्मना अंग छे एम मानीए तो
मनुष्यना हाथ, पग आदि अंगोमां परस्पर अंतराल थतां एकपणुं रहेतुं नथी, जोडायेलां रहे
त्यां सुधी ज एक शरीर नाम पामे छे. तेम लोकमां तो सर्व पदार्थोनुं परस्पर अंतराल प्रगट
देखाय छे तो तेनुं एकपणुं केवी रीते मानवामां आवे? अंतराल होवा छतां पण एकपणुं
मानवामां आवे तो भिन्नपणुं क्यां मानशो?
अहीं कोई एम कहे के — ‘सर्व पदार्थोना मध्यमां सूक्ष्मरूप ब्रह्मनुं अंग छे जे वडे
सर्व पदार्थ जोडायेला रहे छे. तेने कहीए छीए के —
जे अंग जे अंगथी जोडायेलुं छे ते तेनाथी ज जोडायेलुं रहे छे के ते अंगथी छूटी –
छूटी अन्य – अन्य अंगनी साथे जोडाया करे छे? जो प्रथम पक्ष ग्रहण करवामां आवे तो
सूर्यादिक गमन करे छे तेनी साथे जे जे सूक्ष्म अंगोथी ते जोडायेलो छे ते पण गमन करशे
वळी तेने गमन करतां ए सूक्ष्म अंगो जे अन्य स्थूल अंगोथी जोडायेलां रहे छे ते स्थूल
अंगो पण गमन करवा लागे, अने एम थतां आखो लोक अस्थिर थई जाय. जेम शरीरनुं
कोई एक अंग खेंचतां आखुं शरीर खेंचाय छे, तेम कोई एक पदार्थनुं गमनादिक थतां सर्व
पदार्थनुं गमनादिक थाय, पण एम भासतुं नथी. तथा बीजो पक्ष ग्रहण करवामां आवे तो
ए अंग तूटवाथी ज्यारे भिन्नपणुं थई जाय त्यारे एकपणुं केवी रीते कह्युं? तेथी सिद्ध थाय
छे के सर्व लोकना एकपणाने ब्रह्म मानवुं ए केम संभवे?
वळी एक प्रकार आ छे के — प्रथम तो एक हतुं, पछी ते अनेक थयुं, फरी एक थई
जाय छे तेथी ते एक छे. जेम जळ एक हतुं ते जुदा – जुदा वासणमां जुदुं – जुदुं थयुं छतां
ज्यारे ते मळे छे त्यारे एक थई जाय छे तेथी ते एक छे. अथवा जेम सोनानो पाटलो
एक छे ते कंकण – कुंडलादिरूप थयो फरी मळीने ते एक सोनानो पाटलो बनी जाय छे; तेम
ब्रह्म एक हतुं पण पाछळथी अनेकरूप थयुं वळी ते एक थई जाय छे तेथी ते एक ज छे.
ए प्रमाणे एकपणु मानवामां आवे तो ज्यारे अनेकरूप थयुं त्यारे ते जोडायेलुं रह्युं
के भिन्न थयुं? जो जोडायेलुं छे एम कहेशो तो पूर्वोक्त दोष आवशे तथा जो भिन्न थयुं
कहेशो तो ते वेळा एकपणुं न रह्युं. वळी जल – सुवर्णादिकने भिन्न होवा छतां पण एक
कहेवामां आवे छे, पण ते तो एक जाति अपेक्षाए कहेवामां आवे छे, परंतु अहीं तो सर्व
९८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक
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