हनुमान, भैरव, क्षेत्रपाल, देवी, दहाडी, सती, शीतला, चोथ, सांझी गणगौरी, होली, इत्यादि.
सूर्य, चंद्रमा, गृह, पितृ, व्यंतर इत्यादि. रूपिया – महोर, गाय, सर्प, अग्नि, जळ, वृक्ष, शस्त्र,
खडियो तथा वासणादि अनेकने अन्यथा श्रद्धानपूर्वक जगतमां पूजवामां आवे छे, एनाथी
पोतानां कार्य सिद्ध थाय छे एम श्रद्धानमां माने छे, पण ए कोई कांई कार्यसिद्धिनां कारणो
नथी; तेथी एवा श्रद्धानने गृहीतमिथ्यात्व कहीए छीए.
हवे तेनुं अन्यथा श्रद्धान केवुं होय छे ते अहीं कहीए छीएः —
✾ सर्वव्यापी अद्वैतब्रÙमत निराकरण ✾
केटलाक १अद्वैतब्रह्मने सर्वव्यापी सर्वनो कर्ता माने छे, पण एवो (अद्वैतब्रह्म) कोई
छे ज नहि. मात्र तेओ मिथ्या कल्पना करे छे. प्रथम एने जो सर्वव्यापी मानीए तो सर्व
पदार्थ तथा तेना स्वभाव जुदा जुदा प्रत्यक्ष जोवामां आवे छे. तो ए ब्रह्मने एक केम मनाय?
हा, आ प्रकारो वडे एक मानी शकायः —
एक प्रकार तो आ छे के — सर्व जुदा जुदा पदार्थोना समुदायने कल्पना पूर्वक कोई
एक नाम आपवुं होय तो आपी शकाय. जेम हाथी, घोडा इत्यादि भिन्न – भिन्न छे छतां
तेना समस्त समुदायने सैन्य कहेवामां आवे छे, पण सैन्य नामनी कोई खास जुदी वस्तु
नथी; तेम सर्व पदार्थोनुं समूहात्मक नाम ब्रह्म राखवामां आव्युं होय तोपण तेथी ए ब्रह्म
नामनी कोई खास जुदी वस्तु तो न ठरी, पण मात्र एक कल्पना ज ठरी.
एक प्रकार आ छे के — व्यक्ति अपेक्षाए तो सर्व पदार्थो जुदा जुदा छे पण ते सर्वने
जातिअपेक्षाए कल्पनापूर्वक एक कहीए तो कही शकाय. जेम सो घोडा व्यक्तिअपेक्षाए प्रत्येक
जुदा जुदा छे, परंतु तेना आकारादिनी समानता जोई कल्पनापूर्वक एक जातिरूप कहेवामां
आवे छे. हवे ए जाति घोडाओना समूहथी कोई जुदी वस्तु नथी. तेम जो ए सर्वने
एकजातिनी अपेक्षाए एक ब्रह्म मानवामां आवे तो तेथी कांई ब्रह्म खास जुदी वस्तु न ठरी,
पण मात्र कल्पना ज ठरी.
एक प्रकार आ छे के — प्रत्येक पदार्थ जुदा जुदा छे, तेना मेळापथी जे एक स्कंध
थाय छे तेने एक कहीए छीए. जेम जळना परमाणु जुदा जुदा छे, पण तेनो समुदायरूप
मेळाप थतां समुद्रादि कहीए छीए. अथवा पृथ्वीना परमाणुओनो मेळाप थतां घटादिक कहीए
छीए. हवे अहीं ए समुद्र – घटादिक तेना परमाणुओथी भिन्न कोई जुदी वस्तु नथी. तेम
१.‘‘सर्व खलु इदं ब्रह्म’’ छांदोग्योपनिषद प्रथम खंड १४, मंत्र १।; ‘‘नेह नानास्तिकिंचन’’ कठोपनिषद
अ. २, खंड ४१, मंत्र ११।; ब्रह्मदेवममृतं पुरस्ताद् ब्रह्म दक्षिणं तपश्चोत्तरेण। अघश्चोर्ध्व च प्रसूतं
ब्रह्मवेद विश्वमिदं वरिष्ठम्। मण्डूकोपनिषद खंड २, मंत्र ११.
पांचमो अधिकारः अन्यमत निराकरण ][ ९७