सर्वनो रक्षक शा माटे माने छे? मात्र भक्त भक्त जे होय तेमनो ज रक्षक मान. परंतु
भक्तोनो पण रक्षक ते देखातो नथी कारण के अभक्तो पण भक्त पुरुषोने पीडा उपजावता
जोईए छीए.
त्यारे ते कहे छे के — ‘‘घणीय जग्याए प्रह्लादिकनी सहाय तेणे करी छे.’’ तेने अमे
कहीए छीए के – ज्यां सहाय करी त्यां तो तुं एम मान, परंतु म्लेच्छ – मुसलमान आदि
अभक्त पुरुषोथी भक्त पुरुषो प्रत्यक्ष पीडित थवा वा मंदिरादिकने विघ्न करतां देखी अमे
पूछीए छीए के – त्यां ते सहाय नथी करतो, तो त्यां शुं विष्णुनी शक्ति ज नथी के तेने आ
वातनी खबर नथी? जो शक्ति नथी तो तेमनाथी पण ते (विष्णु) हीनशक्तिनो धारक थयो,
तथा जो तेने खबर नथी तो जेने एटली पण खबर नथी तो ते अज्ञानी थयो.
तुं कहीश के — ‘‘तेनामां शक्ति पण छे तथा ते जाणे पण छे, परंतु तेने एवी ज
इच्छा थई,’’ तो पछी तेने भक्तवत्सल तुं शा माटे कहे छे?
ए प्रमाणे विष्णुने लोकनो रक्षक मानवो साबित थतुं नथी माटे मिथ्या छे.
वळी ते कहे छे के — ‘‘महेश संहार करे छे,’’ ए कहेवुं पण मिथ्या छे. कारण के –
प्रथम तो महेश संहार करे छे ते सदाय करे छे के महाप्रलय थाय छे त्यारे ज करे छे?
जो सदाय करे छे तो जेम विष्णुनी रक्षा करवापणाथी स्तुति करी तेम आनी संहार
करवापणाथी निंदा कर! कारण के – रक्षा अने संहार परस्पर प्रतिपक्षी छे.
वळी ते संहार केवी रीते करे छे? जेम कोई पुरुष हस्तादिक वडे कोईने मारे वा
कोई पासे मरावे, तेम ए महेश पोतानां अंगो वडे संहार करे छे के कोईने आज्ञा करी
मरावे छे? जो पोतानां अंगो वडे संहार करे छे तो सर्वलोकमां घणा जीवोनो क्षणे क्षणे
संहार थाय छे, तो ए केवा केवा अंगोवडे वा कोने कोने आज्ञा आपी, केवी रीते एकसाथे
संहार करे छे? तुं कहीश के – ‘‘महेश तो इच्छा ज करे छे तथा एनी इच्छानुसार तेमनो
संहार स्वयं थाय छे.’’ तो तेने सदाकाळ मारवारूप दुष्ट परिणाम ज रह्या करतां हशे? तथा
अनेक जीवोने एकसाथ मारवानी इच्छा केवी रीते थती हशे? वळी ते महाप्रलय थतां संहार
करे छे तो परमब्रह्मनी इच्छा थतां करे छे के तेनी इच्छा विना ज करे छे? जो इच्छा
थतां करे छे तो परमब्रह्मने एवो क्रोध क्यांथी थयो के – सर्वनो प्रलय करवानी तेने इच्छा थई?
कारण के – कोई कारण विना नाश करवानी तो इच्छा थाय नहि. अने नाश करवानी इच्छा
तेनुं ज नाम क्रोध छे. तो ए कारण बताव! तथा जो कारण विना पण इच्छा थाय छे
तो ए बहावरा जेवी इच्छा थई.
तुं कहीश के — ‘‘परब्रह्मे आ खेल बनाव्यो हतो अने वळी ते दूर कर्यो, एमां कारण
कांई पण नथी.’’ तो खेल बनाववावाळो पण खेल इष्ट लागे छे त्यारे बनावे छे तथा अनिष्ट
पांचमो अधिकारः अन्यमत निराकरण ][ १०९