Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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वळी ते विष्णुने लोकनो रक्षक कहे छे ते पण मिथ्या छे. कारण के रक्षक होय ते
तो बे ज कार्य करे छे. एक तो दुःख उपजाववावाळां कारण न थवा दे तथा बीजुं सुखनो
नाश करनारां कारणो न थवा दे. पण लोकमां तो दुःख ज उपजावनारां कारण ठाम ठाम
जोवामां आवे छे, अने तेनाथी जीवोने दुःख ज थतुं देखाय छे. भूख
तरस आदि लागी
रह्यां छे, शीतउष्णादिक वडे दुःख थाय छे, जीवो एकबीजाने दुःख उपजावे छे तथा शस्त्रादि
दुःखना कारणो बनी रह्यां छे. वळी विनाशनां कारण पण अनेक बनी रह्यां छे. जेमके
रोगादिक वा अग्निविषशस्त्रादिक पर्याय नाशनां कारणो जीवोने जोवामां आवे छे, तथा
जीवोने परस्पर विनाशनां कारणो पण जोईए छीए. ए प्रमाणे बंने प्रकारथी रक्षा करी नहि
तो ए विष्णुए रक्षक थईने शुं कर्युं?
त्यारे ते कहे छे के‘‘विष्णु रक्षक ज छे. जुओ, क्षुधातृषादिक मटाडवा अर्थे अन्न
जळादिक बनाव्यां छे, कीडीने कण अने हाथीने मण पहोंचाडे छे, संकटमां सहाय करे छे
अने मरणनां कारण बनतां पण
टिटोडीनी
माफक बचावे छे, इत्यादि प्रकारथी विष्णु रक्षा
करे छे.’’ तेने अमे पूछीए छीए केजो एम छे तो ज्यां जीवोने क्षुधातृषादिक घणां पीडे
छे, अन्नजळादिक तेमने मळतां नथी, संकट वेळा कोई सहाय होती नथी तथा किंचित् कारण
पामतां तेमनुं मरण थई जाय छे, त्यां ए विष्णुनी शक्ति ज नहोती के तेने ज्ञान नहोतुं?
तथा लोकमां एवा बीजा घणा ज दुःखी थाय छे
मरण पामे छे तो तेमनी रक्षा विष्णुए
केम न करी?
त्यारे ते कहे छे के‘‘ए जीवोना पोताना कर्तव्यनुं फळ छे.’’ तेने अमे कहीए छीए
केजेम लोभी जूठो शक्तिहीन वैद्य कोईनुं कांई भलुं थाय तेने तो कहे के ‘‘मारुं कर्युं थयुं’’
तथा ज्यां बूरुं थायमरण थाय त्यारे कहे के‘एनुं एम ज थवा योग्य हतुं.’ तेम तुं कहे
छे के‘‘भलुं थयुं त्यां तो विष्णुनुं कर्युं थयुं तथा बूरुं थयुं त्यां जीवोना कर्तव्यनुं फळ थयुं.’’
पण एवी जूठी कल्पना शा माटे करे छे? कां तो बूरुंभलुं बंने विष्णुनुं कर्युं कहे अगर
कां तो पोताना कर्तव्यनुं फळ कहे. जो विष्णुनुं कर्युं थयुं होय तो घणा जीवो दुःख अने शीघ्र
मरण पामता जोईए छीए. हवे एवुं कार्य करे तेने रक्षक केवी रीते कहीए? तथा जो पोताना
कर्तव्यनुं फळ छे तो ‘‘करशे ते पामशे’’ एमां विष्णुए शुं रक्षा करी?
त्यारे ते कहे छे के‘‘जे विष्णुना भक्त छे तेमनी ते रक्षा करे छे.’’ त्यां अमे कहीए
छीए केजो एम छे तो कीडी कुंजरादि तेमनां भक्त नथी छतां तेमने अन्नादिक
पहोंचाडवामां, संकट वेळा सहाय थवामां तथा मरण न थवामां विष्णुनुं कर्तव्य मानी तेने
१. एक प्रकारनुं पक्षी (टीटोडी) एक समुद्रना किनारे रहेती नथी. तेनां इंडां समुद्र वहेवडावी
लई जतो हतो तेथी दुःखी थई तेणे गरुडपक्षीनी मारफत विष्णुने अरज करी एटले विष्णुए समुद्रनी
पासेथी तेना इंडां पाछां अपाव्यां. आवी कथा पुराणोमां छे.
१०८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक