छे तेम ब्रह्मा इच्छा करे ते अनुसार सृष्टि नीपजे छे, तो तेथी ब्रह्मा तो मात्र इच्छानो
ज कर्ता थयो अने लोक तो स्वयं नीपज्यो! वळी इच्छा तो परमब्रह्मे करी हती तेमां ब्रह्मानुं
कर्तव्य शुं थयुं के जेथी तुं ब्रह्माने सृष्टिनो निपजाववावाळो कहे छे?
तुं कहीश के — ‘‘परमब्रह्मे पण इच्छा करी तथा ब्रह्माए पण इच्छा करी त्यारे लोक
नीपज्यो.’’ तो तेथी एम जणाय छे के केवळ परमब्रह्मनी इच्छा कार्यकारी नथी अने तेथी
तेनामां शक्तिहीनपणुं आव्युं.
वळी अमे पूछीए छीए के — जो लोक केवळ बनाव्यो बने छे तो बनाववावाळो तो
सुखना अर्थे ज बनावे अने इष्ट रचना ज करे, पण लोकमां तो इष्ट पदार्थ थोडा अने
अनिष्ट पदार्थ घणा देखाय छे! जीवोमां देवादिक बनाव्या ते तो रमवा अर्थे वा भक्ति
कराववा अर्थे इष्ट बनाव्या हशे, पण इयळ, कीडी, कूतरां, सूवर अने सिंहादिक शा माटे
बनाव्या? ए तो कांई रमणीक नथी तथा भक्ति पण करतां नथी, सर्व प्रकारे अनिष्ट ज
छे. दरिद्री, दुःखी अने नारकीओने जोवाथी पण पोताने जुगुप्सा आदि दुःख ऊपजे एवा
अनिष्ट शा माटे बनाव्या?
त्यारे ते कहे छे के — ‘‘ए जीवो पोताना पाप वडे इयळ, कीडी, दरिद्री अने नरकादि
पर्याय भोगवे छे.’’ त्यां अमे पूछीए छीए के – पाछळथी तो पापना ज फळथी एवा पर्याय
थया कहे, परंतु पहेलां लोकरचना करतां ज तेमने एवा शा माटे बनाव्या? वळी ते जीवो
पाछळथी पापरूप परिणम्या ते केवी रीते परिणम्या? जो पोते ज परिणम्या एम कहीश तो
एम जणाय छे के – ब्रह्माए पहेलां तो तेमने निपजाव्या पण पाछळथी तेओ तेना आधीन
न रह्या तेथी ब्रह्माने दुःख ज थयुं.
तुं कहीश के — ब्रह्माना परिणमाव्या तेओ परिणमे छे तो तेमने पण पापरूप शा माटे
परिणमाव्या? जीवो तो पोताना निपजावेला हता, तो तेमनुं बूरुं तेणे शा माटे कर्युं? एटले
एम पण बनतुं नथी.
वळी अजीव पदार्थोमां सुवर्ण – सुगंधादि सहित वस्तु बनावी ते तो रमवा माटे बनावी
पण कुवर्ण – दुर्गंधादि सहित दुःखदायक वस्तु बनावी ते शा माटे बनावी? एनां दर्शनादिकथी
ब्रह्माने कांई सुख तो नहि ऊपजतुं होय. तुं कहीश के – ‘‘पापी जीवोने दुःख आपवा माटे
बनावी.’’ तो पोते ज निपजावेला जीवोथी तेणे आवी दुष्टता शा माटे करी के तेमने दुःखदायक
सामग्री पहेलांथी ज बनावी? वळी धूळ पर्वतादिक केटलीक वस्तुओ एवी छे के जे रमणीक
पण नथी तथा दुःखदायक पण नथी, एवी वस्तुओने शा माटे बनावी? पोतानी मेळे तो
जेम तेम ज होय तथा बनाववाळो बनावे ते तो प्रयोजनसहित ज बनावे. माटे ‘‘ब्रह्मा
सृष्टिनो कर्ता छे’’ ए मिथ्या वचन छे.
पांचमो अधिकारः अन्यमत निराकरण ][ १०७