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(१५)
अधिकार नवमो ३१० थी ३४४
मोक्षमार्गनुं स्वरूप............................... ३१०
आत्मानुं हित एक मोक्ष ज छे ............. ३१०
सांसारिक सुख दुःख ज छे .................. ३१२
पुरुषार्थथी ज मोक्षप्राप्ति ...................... ३१४
मोक्षमार्गनुं स्वरूप............................... ३१८
लक्षण अने तेना दोष ......................... ३१९
सम्यग्दर्शनादिकनुं साचुं लक्षण................ ३२०
तत्त्व सात ज केम? ............................ ३२१
तत्त्वार्थ श्रद्धानलक्षणमां अव्याप्ति
– अतिव्याप्ति
– असंभवदोषनो परिहार .............. ३२४
विषय कषायादिक वखते पण सम्यकत्वीने
तत्त्वश्रद्धान ................................. ३२५
निर्विकल्पदशामां पण तत्त्वश्रद्धान............. ३२६
सम्यक्त्वना विभिन्न लक्षणोनो मेळ ........ ३२८
सम्यक्त्वना भेद ................................. ३३५
सम्यग्दर्शननां आठ अंग ...................... ३४३
सम्यग्दर्शननां २५ दोष ....................... ३४४
(परिशिष्ट १)
समाधिमरणनुं स्वरूप................... ३४५
[ पंडितप्रवर टोडरमलजीना सुपुत्र
पंडित गुमानीरामजीए रचेलुं ]
सम्यग्द्रष्टि केवो छे? ........................... ३४५
सम्यग्द्रष्टि रागी केम थतो नथी? .......... ३४६
(परिशिष्ट २)
रहस्यपूर्ण चिठ्ठी ......................... ३४७
(आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी द्वारा रचित)
(परिशिष्ट ३)
परमार्थवचनिका ...........................३५६
[कविवर पं० बनारसीदासजी रचित]
निश्चय अने व्यवहारनुं विवरण.............. ३५७
ए त्रणे अवस्थानुं विवरण ................... ३५७
निश्चय तो द्रव्यनुं स्वरूप अने व्यवहार
संसारावस्थित भाव, तेनुं विवरण ... ३५७
हवे त्रणे व्यवहारनुं स्वरूप ................... ३५७
आगम – अध्यात्मनुं स्वरूप ..................... ३५८
अनंतता कही तेनो विचार .................... ३५८
हवे मूढ अने ज्ञानी जीवनुं विशेषपणुं
अन्य पण सांभळो...................... ३५९
सम्यग्द्रष्टिनो विचार सांभळो ................ ३५९
हेय-ज्ञेय-उपादेयरूप ज्ञातानी चालनो
विचार ...................................... ३६०
(परिशिष्ट ४)
उपादान – निमित्तनी चिठ्ठी ...............३६२
[कविवर पं० बनारसीदासजी लिखित]
हवे चौभंगीनो विचार — ज्ञानगुण निमित्त
अने चारित्रगुण उपादानरूप, तेनुं
विवेचनः .................................. ३६३
निमित्त – उपादाननो शुद्ध – अशुद्धरूप
विचार ...................................... ३६६
इति निमित्त – उपादान शुद्धाशुद्धरूप
विचार वचनिका. .......................... ३६६