Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषयपृष्ठ विषयपृष्ठ
(१४)
शुभने छोडी अशुभमां प्रवर्तवुं योग्य
नथी ......................................... २०९
केवळ निश्चयावलंबी जीवनी प्रवृत्ति.......... २१०
स्वद्रव्य
परद्रव्यनां चिंतवनवडे निर्जरा
बंधनो प्रतिबंध ........................... २१४
निर्विकल्प दशानो विचार ...................... २१५
केवळ व्यवहारावलंबी जैनाभासोनुं
निरूपण .................................... २१८
कुळ अपेक्षा धर्मधारक व्यवहाराभासी ...... २१८
परीक्षारहित आज्ञानुसारी धर्मधारक
व्यवहाराभासी ............................ २२०
सांसारिक प्रयोजन अर्थे धर्मधारक
व्यवहाराभासी .......................... २२३
व्यवहाराभासी धर्मधारकोनी सामान्य
प्रवृत्ति .................................... २२४
धर्मबुद्धिथी धर्मधारक व्यवहाराभासी ........ २२५
सम्यग्दर्शननुं अन्यथारूप ....................... २२५
जैनाभासानीे सुदेव-गुरु-शास्त्र भकितनुं
मिथ्यापणुं .................................. २२६
देवभकितनुं अन्यथारूप ......................... २२६
गुरुभकितनुं अन्यथारूप ........................ २२७
शास्त्रभकितनुं अन्यथापणुं ...................... २२८
तत्त्वार्थश्रद्धाननुं अयथार्थपणुं ................... २२८
जीव-अजीवतत्त्वनुं अन्यथारूप ................. २२९
जीवाजीवतत्त्वना श्रद्धाननी अयथार्थता....... २२९
आस्रवतत्त्वना श्रद्धाननी अयथार्थता ......... २३०
बंधतत्त्वनुं अन्यथारूप .......................... २३२
संवरतत्त्वनुं अन्यथारूप ......................... २३२
निर्जरातत्त्वनां श्रद्धाननी अयथार्थता ......... २३४
मोक्षतत्त्वना श्रद्धाननी अयथार्थता ............ २३७
सम्यग्ज्ञाननुं अन्यथारूप ....................... २३९
सम्यक्चारित्र अर्थे थती प्रवृत्तिमां
अयथार्थता ................................. २४३
द्रव्यलिंगीना धर्मसाधनमां अन्यथापणुं ...... २४९
द्रव्यलिंगीना अभिप्रायनुं अयथार्थपणुं ....... २५१
उभयाभासी मिथ्याद्रष्टि ........................ २५४
सम्यक्त्वसन्मुख मिथ्याद्रष्टिनुं निरूपण ...... २६४
पांच लब्धिओनुं स्वरूप ........................ २६७
अधिकार आठमो २७४ थी ३०९
(उपदेशनुं स्वरूप)
अनुयोगनुं प्रयोजन ............................. २७४
प्रथमानुयोगनुं प्रयोजन ......................... २७४
करणानुयोगनुं प्रयोजन ......................... २७५
चरणानुयोगनुं प्रयोजन ......................... २७६
द्रव्यानुयोगनुं प्रयोजन .......................... २७७
प्रथमानुयोगमां व्याख्याननुं विधान........... २७७
करणानुयोगमां व्याख्याननुं विधान ........... २८०
चरणानुयोगमां व्याख्याननुं विधान .......... २८३
द्रव्यानुयोगमां व्याख्याननुं विधान ............ २८८
चारे अनुयोगोमां व्याख्याननी पद्धति ....... २९१
व्याकरण, न्याय, छंद, कोष, वैद्यक, ज्योतिष
अने मंत्रादिशास्त्रनुं प्रयोजन ............ २९२
प्रथमानुयोगमां दोषकल्पनानुं निराकरण ..... २९३
करणानुयोगमां दोषकल्पनानुं निराकरण ..... २९४
चरणानुयोगमां दोष
कल्पनानुं निराकरण .. २९६
द्रव्यानुयोगमां दोषकल्पनानुं निराकरण .... २९७
व्याकरणन्यायादिक शास्त्रोनी उपयोगिता... २९९
अपेक्षाज्ञानना अभावे आगममां देखाता
परस्पर विरोधनुं निराकरण ........... २९९