वंदुं सत्श्रुति सद्गुरु चरणने सत्कार्य सिद्धे ठरूं;
प्रारंभे परमेष्ठी पंच प्रणमुं मांगल्य आपे सदा,
सौने श्रेय करे धरे स्वपदमां स्वानंद दे सर्वदा.
मोक्षमार्ग प्रकाशक श्रेष्ठ सुखदायी छे;
अनादिनुं दुःख जाय आत्मसिद्धि सद्य थाय,
आस्रव रोकाय भाव संवर वराय छे.
नमो नमो शुद्ध भाव सच्चिति स्वरूप गुरु,
ज्ञान-ध्यान आत्म पुष्टि सत्वर कराय छे;
मंगळ कल्याणमाला सुगंध विस्तार थाय,
मोह भाव जाय शुद्ध स्वभाव पमाय छे.
वंदुं निजगुण वृद्धिकर, लहुं सदा सुखखाण.